Thursday 25 February 2016

नमो कुरुक्षेत्र

मैने एक पुस्तक पढ़ी जिसका नाम था- नमो कुरुक्षेत्र जो कि पंतनगर विश्व विद्यालय के एक प्राध्यापक डॉक्टर शिवेंद्र कश्यप जी ने लिखी है। पुस्तक में महाभारत के वृतांतों के माध्यम से युवा पीढ़ी के मन में उठने वाले अनेक द्वंदों के लिए सरल उत्तर दिए गये हैं। कुछ पंक्तियाँ जिन्होंने मुझे प्रभावित किया इस प्रकार है-

1. बड़े त्याग के लिए वही आगे आते हैं जो सबसे प्रतिभावान, चमकते हुए, सर्व श्रेष्ठ होते हैं। जिनके पास कम होता है, वे घबराते है बाँटते हुए।

2. जैसे घी डाल डालकर अग्नि बुझाने की कल्पना करना मुर्खता है, वैसे भी इच्छाओं की पूर्ती कर-कर के खुश और संतुष्ट रहने की कोशिश करना मुर्खता है।

3. ज्यादा अर्जित करने या कुछ बड़ा कर के दिखाने के मुकाबले देश और समाज को ज्यादा लौटा पाने की प्रतिबद्धता और इच्छा मनुष्य को राष्ट्र निर्माता बनाती है।

4. जीवन में प्रतिभा का महत्व कम और उद्देश्य का महत्व ज्यादा है।


5. अच्छाई - सच्चाई के मार्ग पर अनेकों संघर्ष हैं पर सच्चे योद्धा तूफानों से विचलित नही होते। प्रतिरोध उनका सोपान है और पराजय उनकी प्रेरणा, प्रतिकूलता उनकी सहचरी है और स्पर्धा उनका रोमांच।


6. ना कोई किसी को सिखा पाया ना कोई किसी से सीख पाया । जो जान गया उसे सीखने से कौन रोक पाया है ? जो जागने को तैयार ना हो उसे कौन सिखा पाया ?


7. जीवन का सबसे बड़ा संकट है प्रतिबद्धता का आभाव । बहुत से लोग प्रतिभावान होकर भी अपने सपनों को मूर्तरूप नही दे पाते, क्योंकि वे सपने तो देखते है पर सपनों को हकीकत बनाने की कीमत नहीं चुकाना चाहते।

8. जब सीखने की उत्कंठा इस हद तक हो जाये कि सारी सीमाएं महत्वहीन लगने लगे और आप उस विषय के साथ खेलने लगे, वह विधा संगीत बनकर आपकी नसों में झनझनाने लगे, वह ज्ञान स्वयं को आपके सामने अनावृत करने लगे, उसके अभ्यास की अति भी आपको आनंद ही आनंद दे, तो समझें आप उसकी गहराई तक जा रहे है। फिर आपको किसी बाहरी गुरु की आवश्यकता नहीं रहेगी। आप जो करेंगे वो अद्भुत होगा।

9. स्वयं पर अपरिमित विश्वास रखते हुए जीवन के हर कठिन पल को अपनी अग्नि परीक्षा मानते हुए बढ़ते चले जाने की अदम्य इच्छा शक्ति ही जीवन है।

10. कृष्णा सबके अपने थे पर किसी के प्रति आसक्त नही थे, उन्हें आसक्ति है तो जीवन लक्ष्य से। इसी प्रकार हमारे जीवन में भी संबंध जैसे पारिवारिक, मित्रों से संबंध, स्थान से संबंध, वस्तुओं से संबंध आदि महत्वपूर्ण है, पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण है जीवन लक्ष्य।

11. कृष्ण का प्रथमतः अर्थ है जीवन का वह सत्य जो आसक्ति- विरक्ति से परे है और जो हमारे अनादि-अनन्त स्वरूप का आभाव और स्मरण कराता रहता है। कठिनाइयां तो सबके जीवन में आती है पर उन्हें अपनी शक्ति और प्रेरणा बना लेने की क्षमता का नाम है कृष्ण।
हर संभव चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार करने का नाम है कृष्ण।    




हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...