नशा ये इश्क़ का यूं चढ़ा
बावरी सी फिरूं और चाहूँ
महफ़िल का जाम बन
तेरे लबों को छूना
सर्द हवा बन
बदन की खुशबू चुराना
लहू की बूंद बन
तेरे भीतर समाना
तू ही दुआ है और
तू ही आरजू
सोचती हूँ
ये जीवन तुझ पे वार दूं
तमन्ना है कि बस
मेरे हाथों में तेरा हाथ हो
और आखिरी सांस तक
तू ही मेरा अहसास हो।
-शालिनी पाण्डेय