कुछ ख्वाहिशें आज़ाद हो रही है
कुछ बंदिशे टूट सी रही है
एक कोंपल खिल रही है
वो ज़र्द पेड़ मुरझा सा रहा है
मीठा सा दर्द हो रहा है
कुछ घाव भर से रहे है
वो खालीपन सिमट रहा है
शायद प्यार का बीज पनप रहा है
-शालिनी पाण्डेय
शब्द मेरी भावनाओं के चोले में
कुछ ख्वाहिशें आज़ाद हो रही है
कुछ बंदिशे टूट सी रही है
एक कोंपल खिल रही है
वो ज़र्द पेड़ मुरझा सा रहा है
मीठा सा दर्द हो रहा है
कुछ घाव भर से रहे है
वो खालीपन सिमट रहा है
शायद प्यार का बीज पनप रहा है
-शालिनी पाण्डेय
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