Monday 31 December 2018

नया साल

जिसे तुम कहते हो
नया साल
मुझे तो उसमें कुछ
ऐसा नहीं दिखता
जिसके लिए मैं
जश्न मनाऊँ

ये सुबह भी
बीती सुबहों जैसी
अकेली ही थी
चाय की चुस्कियां लेते
वक़्त आज भी सिर्फ
यादें ही साथ थी

फर्क था तो इतना
कि मेरे सिर पर
सफेद बालों की तादात बढ़ गयी थी
चेहरे पर दो चार झुर्रियां
और निकल आयी थी

और मैं
कुछ खोजते खोजते
एक पल शून्य में समा
कर फिर लौट आयी
इस नितांत अकेली
थकी दुनिया में
जहाँ नए साल का जश्न
अब भी मनाया जा रहा था।

-- शालिनी पाण्डेय

Wednesday 19 December 2018

किरदार

ना सिग्नल थे
ना सोशल मीडिया
ना दोस्तों का हुजूम
ना ही पहचाना शहर

बस तुम थे और
जीवन का सफर

तुम तुम जैसे थे
मैं मैं जैसी
ना कोई वादे थे
ना कोई बंदिशें

बस दो किरदार थे
अपने आप को
खुद ही लिखते से।

--शालिनी पाण्डेय

Wednesday 5 December 2018

जिंदगी

लंबे सफर में
जब मीलों तक
कोई आस पास
नहीं दिखता

लोगों से भरे
हुए सड़क पर
जब शोर नहीं
सुनाई देता

सिर्फ तभी मुझे कितनी
साफ नजर आती
हो तुम जिंदगी।

-- शालिनी पाण्डेय

Sunday 2 December 2018

सर्दी के एक रोज

सर्दी के एक रोज
मैं ताप रही थी
एक रिश्ते की गर्माहट को
आंखे मूंदे
थाप रही थी
साथ वाली तस्वीर को 

आती सांस के साथ
पाट रही थी
बीच के फैसलों को
और लकीरों पर
सजा रही थी
तुम्हारे नाम की हिना को।

अजीब बात है ना ?
ना मैंने इजाज़त मांगी
ना तुमने कुछ कहा
बिना तुमसे पूछे ही
खुद में जोड़ती जाती हूं तुमको।

-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 28 November 2018

रिक्तता

कही भीतर कुछ है
जो भरने की
कोशिश में लगा है
पर इसके बावजूद भी
खाली सा रह जाता है।

दिन की रोशनी में
लगता है पूरा हो रहा है
लेकिन रात फिर इसे
अधूरा कर जाती है

क्या ये तुम्हारे आने
से भरेगा?
या तब भी
खाली ही रहेगा?

- शालिनी पाण्डेय

Monday 26 November 2018

मैं तुझे जोड़ देती हूं

मैं तुझे जोड़ देती हूं
हर उस कविता से
हर उस कहानी से
हर उस गीत से
जिनमें आस है
मिलन की

मैं तुझे जोड़ देती हूं
हर उस शेर से
हर उस ग़ज़ल से
हर उस दृश्य से
जिसमें टीस है
बिछड़न की

मैं तुझे जोड़ देती हूं
हर उस अल्फ़ाज़ से
हर उस ख़्याल से
हर उस खामोशी से
जिसमें कसमकस है
तुझे समझने की।

-शालिनी पाण्डेय

Thursday 22 November 2018

टक्कर

राह चलते
वो मुझसे टकराई
थोड़ा पास आयी
और मुस्काई

मेरी रूह
बेनूर हो गई
नजदीकियां जब
यूँ टकराई

-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 21 November 2018

कौन

मैं कौन हूं?
ये प्रश्न बार बार
मेरे सामने आता है

कई बार खुद ब खुद
कई बार लाया जाता है

मैं कविता हूं
नहीं, मैं कहानी हूं
जिसका अंत होता है

मैं क्या हूं?
क्या मैं सचमुच
कुछ हूं?

क्या मैं जरूरी हूं
नहीं-नहीं
मैं तो यूँ ही हूं
जैसा होना होता है।

-शालिनी पाण्डेय

वक़्त के इंतजार में

वक़्त के इंतजार में
दो राही
ताक रहे थे राह

सोच रहे थे
कब आएगी
राहें वो आसान

ठहरे रहे
आस लिए
पर ढल गयी
जीवन की सांझ

अब यूं ही
सबके लिए
थोड़े आती
राहें वो आसान।

-शालिनी पाण्डेय

मैं

मैं तुम्हें बुनना चाहती थी
लेकिन तुम उधड़ते गए
मैं सम्हलना चाहती थी
लेकिन गिरती रही

मैं सुंदरता चाहती थी
लेकिन जर्जर होती गई
मैं तुम्हें सांसें देना चाहती थी
लेकिन जल कर खाक होती रही

अजीब चाह थी
मैं तुम बनना चाहती थी
पर ना तुम ही बन सकी
और ना मैं ही रह गई।

-शालिनी पाण्डेय

मैं चाहती थी

मैं चाहती थी
तुम्हारी बाहें थामे
लंबी सड़क पे चलना ।
तेरे काँधे पर सिर टिकाये
समुद्र को देखना ।

मैं चाहती थी
तुम्हारे साथ तन्हाई के
कुछ लम्हें बांटना ।
सीमाओं को लांघकर
तुम्हारे करीब आना।

मैं चाहती थी
तुम्हारे लिए कुछ बुनना
जिसे तुम दुख में ओढ़ पाते।
कुछ ऐसा लिखना
जिसे तुम संजो के रख पाते ।

मैं चाहती थी
तुम्हारे साथ दिल खोल के हँसना
और दिल खोल के रोना ।
चाहती थी तुम्हारे बालों के रंग को
बदलते हुए देखना ।

मैं चाहती थी
तुम्हारे माथे पर आने वाली
हर शिकन की तस्वीर बनाना ।
घर के हर एक कोने को
तुम्हारे चित्रों से सजाना ।

शायद
मैं और भी बहुत कुछ चाहती थी
लेकिन तुम्हारी उस चुप्पी ने
इन चाहतों को मुझसे दूर कर दिया।

-शालिनी पाण्डेय

टूटना

मैं बिगाड़ देना चाहती हूं
तुम्हारे चित्र को
लेक़िन इस क़यास में
वो बनता ही जाता है ।

मैं बिखेर देना चाहती हूं
तुम्हारे होने के अहसास को
पर हर बिखराव के साथ
वो गहराता जाता है।

बार-बार मैं टूटती हूँ
टूट टूटकर गिरती हूं
और जितना मैं टूटती हूँ
तुम उतने ही विशाल होते जाते हो।

-शालिनी पाण्डेय

तुम

तुम हमेशा भागते रहे
मुझसे और इस करीबी से

लेकिन मैं कहाँ जाती
मेरे पास तो ये भी नहीं बचा।

अब तुम ही बताओ
क्या कोई खुद से भाग पाया?

-शालिनी पाण्डेय

तुम

जब तुम थक जाओगे
लुक्का छिप्पी खेलते हुए
या फिर पा लोगे उसे
खोजते खोजते

शायद तब तुम अहसास हो
मैंने तुम्हें पहले ही
खोज लिया था
बस तुम ही नहीं समझे।

-शालिनी पाण्डेय

Saturday 17 November 2018

मैं तुझे खोजती हूं

मैं तुझे खोजती हूं,
हर जगह खोजती हूं,
कोरे पन्नों में,
उर्दू के हर्फों में,
पाश की कविताओं में,
साहिर के गीतों में,
जगजीत की गज़लों में,
जॉन के शेरों में,
रेख़्ता की शायरी में,
आषाढ़ के एक दिन में,

इतना ही काफी नहीं
मैं फिर तुझे खोजती हूं
गलियों में,
तस्वीरों में,
अनजान चेहरों में,
बातों में,

मैं तुझे ढूढ़ती हूं
कांपती ठंड में,
घुप अंधेरे में,
बीतते पलों में,
आते ख्यालों में,

खुद को भी इतना नहीं खोजा
जितना तुझे खोजती हूं
जाने क्यूं मैं बार - बार
तुझे ही खोजती हूं।


-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 14 November 2018

तठस्थता

तुम्हारे दूर होने पर भी
मैं भावों में डूबी रहती हूं
और मेरे समीप होने पर भी
तुम इतने तटस्थ कैसे रह लेते हो?

-शालिनी पाण्डेय 

Saturday 27 October 2018

अहसास

रोज़ बातें और मुलाकातें
इतनी भी जरूरी नहीं, 
तेरे होने का अहसास ही
काफी है मेरे लिए.... 

ये ख़ामोशी और फ़ासले
इतने भी नही अखरते
अब कहीं भी रहे तू
हर पल करीब ही है मेरे लिए...... 

-शालिनी पाण्डेय

Saturday 13 October 2018

Sip of tea

Each morning
I start my day
by pouring your memories
into my cup of tea
I stir them slowly
and with each sip of
my morning tea
I wish
there will be
one fine morning
when I will be
sharing this sip
with you my love.

- Shalini Pandey

Some Days

There are days
some are like pink,
some are like blues. 
There are days
with glittering shines,
with ominous shadows.  
On some days
sunshine peeps into room
While on other
It's filled with hell darkness
On some days
gentle breeze touch my soul like a music
On other days
it crush me hard like a stone
Some days passes smooth
like flow of holy river
While some are
hard to sail through.
I think it is one such day
which seems like passing silently
But inside me is crying loud
in separation of my beloved.

- Shalini Pandey

Saturday 29 September 2018

खोजी मन

ये हर वक़्त
क्या खोजता रहता है तू
क्या ढूढ़ता है
मेरे वजूद को ?
या तराशता है
मेरी शक़्ल को ?
क्या खोजता है
मेरे दर का रास्ता ?
या मुझे पढ़ने की
कोई किताब ढूढ़ता है ?
या ढूढ़ता है हमारे
उस आशियां की चाभी
जो खो दी थी
सर्कस देखते हुए
कभी तो बता -
ये हर वक़्त
क्या खोजता रहता है तू?

-शालिनी पाण्डेय

Friday 21 September 2018

फूल और पात

कभी खिल जाती हूँ फूल सी
कभी झड़ जाती हूँ पात सी
मैं रोज अधूरी ही रह जाती हूं
अनकही किसी बात सी।

-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 19 September 2018

अनबूझी पहेली

कभी शांत सी
कभी उदास सी
कभी आनंदित सी
कभी हताश सी मैं

कभी बिखरी सी
कभी सिमटी सी
कभी पूनम सी
कभी अमावस सी मैं

कभी नदी सी
कभी सैलाब सी
कभी बयार सी
कभी चक्रवात सी मैं

कभी उथले शब्दों सी
कभी गहरे भावों सी
कभी सूरज की लाली सी
कभी घने रात के अंधियारे सी मैं

जितने सारे भाव हैं
उतने ही रूप भी
पर हूँ तो एक ही मैं
शायद इसीलिए
अनबूझी पहेली सी हूं मैं

-शालिनी पाण्डेय

Monday 17 September 2018

यादों की दस्तक़

तेरी यादों की दस्तक़
मेरी दहलीज़ पर
अब तो रोज ही होती है

घण्टों ये अब मुझसे
बातें करने लगी है
घर के कोनों पर
इकट्ठा भी होने लगी है
ज्यादा हो जाने पर
किवाड़ों से झांकने लगी है

इनमें से कुछ यादें तो
पन्नों में छपने लगी है
और कुछ बिस्तर पर
साथ सोने लगी है
और कुछ इंतजार की
साथी बनने लगी है

अब यूं लगने लगा है कि
ये यादों की दस्तक ही तो है
जो तुम्हें मेरे क़रीब रखने लगी है

-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 5 September 2018

रात के घने अंधेरे में

रात के घने अंधेरे में भी
जाने कैसे लिख लेती है चादर पर
तेरा नाम ये अंगुलियां

करवटे लेते हुए
जाने कैसे पहुँच जाते है तेरे लब
मेरे ख्वाब के जाम पर

सिरहाने के पास ही
जाने कैसे नज़र आ जाती है
तेरी जैसी सूरत

नींद में भी
जाने कैसे हो जाती है
तुझसे मुलाकात

और सवेरा होते ही
जाने कैसे रह जाती है पास
भीनी सी तेरी एक खुशबू।

-शालिनी पाण्डेय

Friday 31 August 2018

मोहब्बत

तन्हाई में भी तन्हा ना होने दे मोहब्बत,
रुसवाइयों में भी रुसवा ना होने दे मोहब्बत।

यादों की एक महफ़िल है मोहब्बत,
जब तू नहीं तो तेरा जिक्र है मोहब्बत।

-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 29 August 2018

निःशब्द

जब मैं तुम्हें सोचते सोचते
हो जाती हूँ निःशब्द,
मुझे जाने क्यूं लगता है
बिन लफ़्ज़ों के भी
कह आयी हूं तुमसे
सारी दास्तां।

अब तुम ही बताओ
क्या तुमने सुनी!

-शालिनी पाण्डेय

Saturday 11 August 2018

जी चाहता है

आग से तपी वो सूरत
जिसे एक टक देखने रहने को जी चाहता है।
सर्द हवाओं से जकड़ रहा वो चेहरा
जिसे लौ से सुलगाने को जी चाहता है।

पतझड़ से सूख रहे वो होंठ,
जिन्हें चूमने को जी चाहता है।
बेनूर हो रहा वो शख्स,
जिसे मौसमों से रंगने को जी चाहता है।

मीलों तक पसरे फ़ासले,
जिन्हें दौड़ कर कम करने को जी चाहता है।
कहने को यूं तो कुछ नहीं,
पर तेरी एक खामोश मुलाकात को जी चाहता है।

-शालिनी पाण्डेय

Monday 30 July 2018

फ़ासले

यूं तो मुझे मालूम है
कि फ़ासले है और रहेंगें,
पर कभी ये फ़ासले
तनहाइयों को इतना गहरा जाते है
कि मन डूब सा जाता है ।

तुम कहो तो
इन फ़ासलों को बांधकर
एक पुल बना कर
तुम्हारे पास आ जाऊं,
और कांधे में सिर टिकाए,
आंखे मूंद बैठी रहूं अडोल।

-शालिनी पाण्डेय

Friday 18 May 2018

ईर्ष्या

यूं तो ये अच्छी बात है कि बुढ़ज्यूँ मन लगा कर रात भर काम  कर रहे थे।

लेकिन बुढ़िया है कि उसे चैन नही पड़ता। कभी इधर को करवट बदलती, कभी उधर को, कभी उठ कर बैठ जाती, कभी पुरानी तस्वीरों को टटोलती, कभी साथ बिताए लम्हों को याद कर मंद मंद मुस्काती, कभी मेज पर रखी उसकी तस्वीर पर हाथ फेरती, कभी उसकी पसंद की नज़्म को गुनगुनाती, कभी अपनी उंगलियों से चादर पर उसका चित्र बनाती।

यही दिनचर्या है बुढ़िया की, उठते जागते हर वक़्त एक ही ख़्याल बुढ़िया का सहारा होता है और वो है उसके बुढ़ज्यूँ की यादें। ये यादें उसके जीवन की जमा पूंजी है जो उसके लिए बेसकीमती है और जिन्हें वो हर समय अपने सीने से लगाये रखती है।
यूं तो कई बरस हो गए दोनों को साथ में लेकिन बुढ़िया का प्यार है कि बुढ़ापे में और जवान होता जा रहा है।

ये बुढ़िया कभी कभी खाली वक़्त में मुझसे मिलने आ जाया करती है। बुढ़िया के पास बहुत से क़िस्से और अनुभव होते है मुझे सुनाने को और मजे की बात तो देखो कि ज्यादातर क़िस्से प्यार से जुड़े हुए होते है। बुढ़िया और बुढ़ज्यूँ के प्यार के क़िस्से।

जो कि मुझे कुछ ज्यादा समझ नही आते। मैं हुई व्हाट्स एप्प और फेसबुक के जमाने की फ़ास्ट जनरेशन। मुझे तो हर चीज की जल्दी रहती है । प्यार करने की जल्दी भी जल्दी और ब्रेक अप करने की भी। मेरे लिए तो रिश्ते मोबाइल फ़ोन के बैक कवर के जैसे थे जब एक से मन भर गया तो दूसरा फिर तीसरा और ये सिलसिला चलता रहता। तो फिर भला बुढ़िया वाले प्यार की गहराई मुझे मारियाना ट्रेंच जैसी लगनी जायज ही थी।

लेकिन समय का पहिया कभी रुकता नही। कुछ सालों बाद जब वो बुढ़िया इस दुनिया से विदा कर चली और मेरी चेहरे पर उम्र की जुररियां साफ दिखने लगी तब मुझे इस बुढ़िया से ईर्ष्या सी होने लगी, भला बुढ़ापे में कोई इतना प्यार कैसे कर सकता है?? और अब भी शायद मेरे लिए बुढ़िया के प्यार की गहराई को समझ पाना उतना ही मुश्किल था जितना कि आकाश के तारों को गिन पाना।

-शालिनी पाण्डेय

Saturday 14 April 2018

रात का सन्नाटा

वो सच्चा अटपटा सा
ज़िद्दी स्वभाव वाला
कुछ ऐब रखने वाला मानुष
जिसकी चुप्पी में मुझे
महसूस होती है गहराई
ना जाने क्यूं मन को भा गया

छलावे की संसार से दूर
विचारों की दुनिया में मगन
खयालों की नगरी में उलझा सा
लगता है मानो तलाश रहा है
किसी खोए कीमती हिस्से को

मुझे डर था हमेशा
किसी के इतने करीब आने का

बेशक दिन का शोर घुला लेता है
करीबी रिश्ते की इस आहट को
लेकिन रात का सन्नाटा फिर मुझे
इसी रिश्ते की गहराई में ले गया।

-शालिनी पाण्डेय

Thursday 12 April 2018

वो यही कही है पास में

सूरज की गुनगुनी धूप में
पहाड़ों पे ढ़लती सांझ में
सूखे पत्तों की सरसराहट में
आंगन में बहती बयार में
वो यही कही है पास में

सुबह अध खुली आँखों में
दिनभर की भागा दौड़ी में
शाम की सुस्ती में
घनी रात की तन्हाई में
वो यही कही है पास में

जागते हुए होश में
नींद के आगोश में
सपनों की मदहोशी में
वक़्त के इंतज़ार में
वो यही कही है पास में

मेज पर पड़ी डायरी में
कलम की लाल श्याही में
पेज पर उकेरे चित्रों में
लिखी हुई कविताओं में
वो यही कही है पास में।

-शालिनी पाण्डेय

Monday 9 April 2018

बवंडर

राहें मोहब्बत की
वो संकरी गली
जो भरी थी
भावों के सैलाब से

इस सैलाब में धीरे से
मैंने कस्ती उतारी
सोचा उसे साथ लेकर
बाहर निकल आऊंगी

पर मुझे कहा खबर थी
कस्ती को बहाने वाले
उस बवंडर की
जो हमारे इंतज़ार में था।

-शालिनी पाण्डेय



Wednesday 4 April 2018

यादों की सलवटें

हर रात में अपने दिल की चादर बिछाती हूं
जिसपे तू सुबह यादों की सलवटें छोड़ जाता है।

शायद मेरी आँख लगने के बाद
चुपके से तू आया होगा
पास आकर बैठा देर तक
मुझे निहारता रहा होगा

शायद आंखों के इशारों से
कुछ बातें भी कही होंगी
और लबों की खामोशी से
प्यार का गीत भी गुनगुनाया होगा

शायद मेरे सिरहाने पर
तूने अपना सर टिकाया होगा
और जगह बनाने के लिए थोड़ा
मुझे छूकर हिलाया भी होगा

पर मैं बावरी तेरी यादों को ओढ़कर ऐसी सोयी होंगी
कि इतने करीब होने पर भी पास ना रुकाया होगा।

-शालिनी पाण्डेय

Tuesday 3 April 2018

मैं शायर

सुबह हुई और हमनें तुम्हें याद किया
सिर झुका तो इबादत के लिए पर तुम्हें सलाम किया
                        -शालिनी पाण्डेय

मेरे करीबी


तेरी आवाज के लिए
घंटों इंतजार करना
उठते ही तेरी खैरियत
की दुआ करना

तेरी खुशियों पर
खुश हो जाना
तेरे गमों से
दुखी हो जाना

तेरी सफलता पर
जश्न मनाना
तेरी असफलता में
साथ निभाना

तेरी झलक दिखने पर
खुश होना
तेरे मुस्कुराने पर
खुशी से पागल हो जाना

तेरी बातों को
सुनते जाना
तेरी चुप्पी को
महसूस करना

तेरी तस्वीर देखते देखते
सो जाना
तेरी यादों में
डूब जाना

तेरे बिना जी रही हूं
फ़िर भी तू ही साथ है
इतना दूर होकर भी
कितना करीब है

कितना कुछ है
तेरे बारे में सोचने को
ये इतना सारा है कि
जिंदगी भर जी सकती हूं।

- शालिनी पाण्डेय

Monday 2 April 2018

इश्क़

ना जानें क्यूं इश्क़ हमें देर से हुआ
लेकिन जब हुआ तो बेहिसाब हुआ
और तुम्ही से ना जाने क्यों हुआ
तुम्हारी इश्क़ करने की उम्र ना रही तो क्या करे
अब उम्र पर तो कम्बख्त हमारा जोर ना हुआ।

- शालिनी पाण्डेय

Sunday 1 April 2018

छुट्टी का दिन

छुट्टी का दिन भी बेहतरीन होता है
तू फुर्सत में बेहद करीब होता है

तेरी बातें, मुलाकातें
बहुत याद आती है
प्यार भरी इन यादों से
तन्हाई और गहराती है

यूं ही बैठे बैठे
ख्यालों की दुनिया बन जाती है
जहाँ लंबा इंतजार खत्म होकर
हमें एक कर जाता है

यहाँ तू ही मैं है और मैं ही तू
फसलों की दीवार गिर सी जाती है
और जिंदगी अब हम पर
प्यार ही प्यार बरसाती है

                       -शालिनी पाण्डेय

Saturday 31 March 2018

तमन्ना

नशा ये इश्क़ का यूं चढ़ा
बावरी सी फिरूं और चाहूँ
महफ़िल का जाम बन
तेरे लबों को छूना

सर्द हवा बन
बदन की खुशबू चुराना
लहू की बूंद बन
तेरे भीतर समाना

तू ही दुआ है और
तू ही आरजू
सोचती हूँ
ये जीवन तुझ पे वार दूं

तमन्ना है कि बस
मेरे हाथों में तेरा हाथ हो
और आखिरी सांस तक
तू ही मेरा अहसास हो।

                              -शालिनी पाण्डेय

Saturday 24 March 2018

मैं शायर

तुम्हारी ख़ामोश निगाहें 
क्या कोई इशारा है जिसे मैं समझ नही पाती

- शालिनी पाण्डेय

Saturday 17 March 2018

मैं शायर

न कुछ साथ आया था,
ना कुछ साथ जाएगा
खुल कर जियेगा तो शायद
कुछ निशा छोड़ जाएगा।

-शालिनी पाण्डेय

Monday 12 March 2018

मैं शायर

सुबह सुबह तेरी यादों की बरसात
मुझे तर कर जाती है
घंटों इसमें भीगने के बाद भी
ये दिनभर  मुझपर टपकती रहती है।

                 -शालिनी पाण्डेय

मैं शायर

हाय! तमन्नाओं का ये सैलाब
कहीं जां ना ले बैठे।

-शालिनी पाण्डेय

Together With You

I wanna........
laugh all my laughter
cry all my sorrows
celebrate all the feast
and all the starve
with you

I wanna .........
hold your hand for forever
rest on your shoulder
sit next to each other
listen to you non stop

I wanna ........
lay side by side
feel the warmth of yours
pour all my love onto you
attend you with all my consciousnesses

I wanna ......
hold you in my heart forever
sync my heartbeats with yours
connect my soul with yours
sing a song of love with you

-Shalini Pandey

Sunday 11 March 2018

मैं शायर

बहुत कुछ कहती है मेरी खामोशियाँ
तू होता पास तो शायद सुन लेता।

- शालिनी पाण्डेय

मेरे भीतर

अधरों को करीब लाकर
प्यासा छोड़ गए हो,
मन के आंगन में दस्तक दे
तन्हा छोड़ गए हो,
तुम अपना एक हिस्सा
मेरे भीतर घोल गए हो,
ये किस नारीत्व को
मेरे भीतर खोल गए हो ??

- शालिनी पाण्डेय

मैं शायर

रुक गई ये निगाहें तेरे दर पे आके,
आगे तेरी मर्जी साथ ले या लौटा दे।

-शालिनी पाण्डेय

शायद

कुछ ख्वाहिशें आज़ाद हो रही है
कुछ बंदिशे टूट सी रही है

एक कोंपल खिल रही है
वो ज़र्द पेड़ मुरझा सा रहा है

मीठा सा दर्द हो रहा है
कुछ घाव भर से रहे है

वो खालीपन सिमट रहा है
शायद प्यार का बीज पनप रहा है

-शालिनी पाण्डेय

Saturday 10 March 2018

मुलाकात

उस मुलाक़ात के बाद
थोड़ी मैं तेरे पास ही रह गयी
और मैं लौट आयी
थोड़ा तुझको लिए।

- शालिनी पाण्डेय

Tuesday 6 March 2018

यादों का गुलदस्ता

जा रही हूं मैं यादों का गुलदस्ता लिए,
लंबे इंतजार के बाद हुई मुलाकात लिए।

तुझे छू कर निकले वक़्त का स्पर्श लिए,
तेरे लबों पे आई दबी सी मुस्कान लिए,

तेरे साथ खामोशी में बिताये हुए पल लिए,
बीच के सन्नाटे को तोड़ती सर्द हवा लिए,

तेरे चेहरे पे दिखे भावों की छाप लिए,
कुछ अनकही बातों की गुंजाइश लिए,

तेरी साँसों से गर्माहट लिए,
तेरी धड़कन की सुगबुगाहट लिए,

तेरे दीदार से जन्मी हलचल लिए,
तेरी करीबी से बढ़ती तन्हाई लिए,

जा रही हूं मैं यादों का गुलदस्ता लिए।

-शालिनी पाण्डेय

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...