राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि- "कमर बाँध लो भावी घुमक्कड़ों, संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है।" इसी से प्रेरणा लेते हुए हमने भी कमर कस ली और हम निकल पड़े पंचाचूली के दर्शन करने के लिए। घुमक्कड़ी चेतना के लिहाज से नए वर्ष 2024 के दिन किया गया यह ट्रैक मेरे लिए बहुत अविस्मरणीय है ।
यह यात्रा बहुत अचानक से ही आयोजित हुई, और इसके सफल कार्यान्वयन को लेकर सुबह तक असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। लेकिन अंततः यह यात्रा हम कर पाये।
यात्रा के पहले दिन हम सुबह 6 बजे पिथौरागढ़ से धारचूला आए, फिर यहां से फिरमाल जी की टीम दारमा घाटी के सीमांत गांव हमें बालिंग तक ले गई। हम शाम के 4 बजे हिमालय की गोद में बसे इस गांव में पहुंचे और दो रात हमने यहां फाइबर ग्लास के बने इग्लूनुमा होम स्टे में बिताई। यहां का मौसम काफ़ी ठंडा था, सुबह - शाम को काफी तेज ठंडी हवाएं चल रही थी। पानी इतना ठंडा था कि छूते ही कंपन सा महसूस हो रहा था। ठण्ड अधिक होने के कारण नल से निकला हुआ पानी जम जा रहा था। रात को यहाँ का तापमान -7 से -12 डिग्री सेल्सियम के बीच में था । इस यात्रा में धारचूला से बालिंग को आते समय रास्ते में सोबला, दर, पंगबावे, बोंगलिंग, उर्थिंग, सेला, चल, नांगलिंग आदि गांव आए।
दारमा घाटी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में लगभग 3470 मीटर की ऊंचाई में स्थित एक बेहद खूबसूरत हिमालयी घाटी है जो कि धौलीगंगा नदी द्वारा बनाई गई है। धारचूला से 18 किलोमीटर आगे आकर तवाघाट से जो दो रास्ते कटते है उनमें से एक दारमा घाटी की ओर जाता है। इसमें यात्रा करना ऑफरोडिंग करने जैसा अनुभव देता है क्योंकि अधिकांश जगह पर रोड़ की स्थिति बहुत ख़राब है और नीचे गहरी खाई है।
इस घाटी के 14 गांव जाड़ों के मौसम में इस उच्च हिमालई क्षेत्र से पलायन कर नीचे धारचूला की तरफ आ जाते है। पलायन करने वाले चौदह गांव है - दर, नांगलिंग, सेला, चल, बालिंग, दुग्तु, सोन, दांतु, बोन, फिलम, तिदांग, गो, मारछा और सीपू। इन गांवों में रहने वाले लोग है:
सेला - सेलाल
सोन: सोनाल
दुग्तु- दुग्ताल
दांतु - दताल
बोन - बोनाल
फिलम - फिरमाल
तिदांग- तितियाल
गो - ग्वाल
मारछा -मार्छाल
सीपू- सिपाल
कंज्योति नाम की जगह पर हमने अपने दोपहर का भोजन किया। यहां पर एक पुल भी है जो कि दारमा घाटी को चौंदास घाटी से जोड़ता है। आगे इसके पास ही सोबला गांव है जहां 2013 में भीषण आपदा आई जिसने अधिकतर घरों को नुकसान पहुंचाया, बाद नया सोबला नामक गांव बसाया गया। इसके बाद हम दारमा घाटी के पहले गाँव दर में पहुंचे। यहाँ पर हरदयोल देवता के मंदिर से आशीर्वाद लेकर हमने अपने आगे की यात्रा जारी रखी। हरदयोल देवता दारमा घाटी के प्रमुख देवों में से एक है और इन्हें भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है ।
इसके बाद आता है नागलिंग गाँव, ऐसी मान्यता है कि इस गाँव से ऊपर की ओर जाने के बाद साँप आदि नहीं पाए जाते है। इस गाँव में रहने वाले नाग की लोक कथा भी इसी गाँव से संबधित है, पहाड़ी पर दिखाई देने वाली सफ़ेद पट्टी को इसके अवशेष के रूप में देखा जा सकता है। नागलिंग गाँव के ऊपर की ओर ब्याक्सी बुग्याल (10700 फीट) स्थित है जहाँ इस गाँव के लोग कीड़ा जड़ी खोदने जाते है ।
इसके बाद आता है सेला गाँव तथा चल गाँव, जिनके रास्ते में काफी सारे अखरोट के पेड़ है । इस गाँव के आस पास सड़क पर बर्फ की परत जमी हुई थी जिसमें गाड़ी को चला पाना काफी मुश्किल काम है । हमें यहाँ पर एक स्कूटी राइडर फंसा हुआ मिला जिसे हमारे टूर संचालक फिरमाल जी के साथियों ने बाहर निकाला। दारमा घाटी में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने लगभग सभी गांवों में होम स्टे और सड़क बना रखे है। लेकिन अभी भी कुछ गांव (सेला, चल, बोन, फिलम, गो आदि) जो धौली नदी के पार है, में सड़क नहीं पहुंच पाई है, यहां केवल पैदल नदी पार करके ही पहुंचा जा सकता है।
घाटी में स्थिति गांव के लोग पर्यटकों का खुले हृदय से स्वागत करते हुए मिलते है। गांव में भ्रमण करते हुए आप इनकी अनूठी परंपरा और संस्कृति को देख सकते है। जैसे - आलम। आलम आपको इस गांव के हर घर के आगे या पीछे लगी हुई मिल जायेगी, जो कि देवदार, भोजपत्र या चीड़ के तने से बनी होती है और इस पर एक ध्वजा बंधी हुई रहती है। इसकी लंबाई घर की लंबाई से अधिक होती है और प्रति वर्ष इसे पूजा पाठ करने के उपरांत स्थापित किया जाता है। यहां रहने वाले लोग प्रकृति की पूजा करने वाले, साहसी और जिंदादिल है।
लोक कथाओं के अनुसार पंचाचूली के विषय में कहा जाता है कि पाण्डवों ने स्वर्ग को जाते समय अपना आखिरी भोजन यहीं पर किया था। भव्य पंचाचूली को दुग्तु और दांतु गांव के बीच बने पुल से भी साफ देखा जा सकता है। दानवीर जसुली दाताल भी दांतु गांव की ही थी जिन्होंने तिब्बत, नेपाल, कुमाऊं तथा गढ़वाल भर में कैलाश मानसरोवर यात्रियों के लिए धर्मशालाओं का निर्माण करवाया था।
अगर ट्रैक की बात की जाए तो यह ट्रैक आसान से मध्यम ट्रैक की श्रेणी में रखा जा सकता है, लेकिन कुछ लोगों को उनके स्वास्थ्य के अनुसार यह कठिन भी लग सकता है। शुरुआत में इस ट्रैक में चढ़ाई है, उसके बाद यह ट्रैक लगभग सीधा - सीधा हो जाता है। यह ट्रैक भोजपत्र के जंगल के बीच में से होकर जाता है। इसके अलावा देवदार, बुरांस, जुनिपर आदि वनस्पति भी आपको ट्रैक के मार्ग पर देखेने को मिलती है । जंगल के समाप्त होने पर कुछ दूरी के बाद आप पंचाचूली बेस कैंप पर पहुंच जाते है। कहीं पर बर्फ की परत मोटी थी और कही पतली लेकिन ट्रैक के पूरे रास्ते में बर्फ थी। कई जगह हमने बर्फ से खेला, और ढलान वाली जगह पर नीचे को आते समय हम बर्फ पर फिसलते हुए आए।
पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक का मार्ग
पर्यटन की दृष्टि से यह घाटी अभी कम ही खोजी गई है, जिसका कारण अत्यधिक विषम भौगोलिक परिस्थिति, सुविधाओं का आभाव, प्रचार - प्रसार की कमी आदि है। इसलिए शांति प्रिय लोगों के लिए यह घाटी हिमालय की लबालब खूबसूरती को अछूते रूप में अनुभव करने के लिए एक आदर्श स्थान है । इतनी भौगोलिक कठिनाईयों में भी सरल और सहज जीवन जीने की कला की झलकियाँ मुझे इस यात्रा के माध्यम से अनुभव करने को मिली। इसके साथ ही भू विज्ञान विभाग की शिक्षिका मेरी साथी हर्षिता जोशी के सानिध्य में मुझे अनेक विषयों पर चर्चा करने का अवसर प्राप्त हुआ।
- शालिनी पाण्डेय
Waah... Bahut hi shandaar varnan hai...
ReplyDeleteDhanywad
Deleteवाह ! यात्रा का सुंदर सारगर्भित वर्णन
ReplyDeleteShukriya
ReplyDeletewell-researched and thorough.....
ReplyDeleteThank you
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