Wednesday 28 October 2020
तुम्हारी प्रेमिका
तुमने कभी नहीं बताया
कि तुम्हें मैं
किन कपड़ों में
ज्यादा अच्छी लगती हूँ
तुमने कभी नहीं कहा
कि मुझे कुछ करने से पहले
तुमसे इजाजत लेनी चाहिए
तुमने ना तो कभी
कोई वादा किया
ना ही कसमें खाई
साथ में जीने-मरने की
तुमने बहुत नज़रे चुराई
ताकि मैं ना पढ़ सकूँ
तुम्हारी आँखों पर चमक
उठने वाले प्रेम को
और ना ही
तुमने कभी भी चाहा
कि मैं महसूस करूं
तुम्हारे भीतर के दुःखों को
तुमने बहुत जतन किये
कि मैं ना पहुँच पाऊं
तुम्हें अंतर्मन तक
लेकिन देखो ना
तुम्हारे कुछ ना कहने
और ना करने से भी
तुम्हारे लिए मेरे प्रेम में
कोई फर्क नहीं पड़ा,
मैं थी कल भी तुम्हारी प्रेमिका
हूँ आज भी और
रहूंगी हमेशा ही।
- शालिनी पाण्डेय
क्या तुम मुझे याद करोगे?
क्या तुम मुझे याद करोगे?
जब सांझ में दूर पहाड़ी से
टकराकर आती आवाज़ेंं
तुम्हें सुनाया करेगी
तन्हाइयों भरा राग....
क्या तुम मुझे याद करोगे?
जब बारिश की झमाझम
पत्तों, टहनियों से गिरते हुए
तुम्हारे किवाड़ के सामने
गुनगुनायेगी सावन का गीत ...
क्या तुम मुझे याद करोगे?
जब मैं समा जाऊंगी
काले स्याह आकाश में,
फिर से किसी पहाड़ पर
फ्योंली बनकर फूटने के लिए...
-शालिनी पाण्डेय
जीने की चाह
बचपन की यादों से भरा
गांव का आंगन
अब धुंधला हो चला है;
सांझ की हवा के साथ
सैम ज्यूँ के थान से आने वाली
घण्टियों की खनक
गुम सी गयी है;
गोबर से लीपे हुए
अम्मा के चूल्हें की
लकड़ियों की ताप
अब मुझ तक नहीं पहुँचती;
जो भी मुझे प्यारे थे,
उन सभी रिश्तों ने
दूरी की एक परत ओढ़कर
खुद को
अलग कर लिया है;
और वो जीवन !!
जिसे जीने की
मुझे बहुत चाह थी
अब कहीं खो सी गयी है।
- शालिनी पाण्डेय
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