गांव का आंगन
अब धुंधला हो चला है;
सांझ की हवा के साथ
सैम ज्यूँ के थान से आने वाली
घण्टियों की खनक
गुम सी गयी है;
गोबर से लीपे हुए
अम्मा के चूल्हें की
लकड़ियों की ताप
अब मुझ तक नहीं पहुँचती;
जो भी मुझे प्यारे थे,
उन सभी रिश्तों ने
दूरी की एक परत ओढ़कर
खुद को
अलग कर लिया है;
और वो जीवन !!
जिसे जीने की
मुझे बहुत चाह थी
अब कहीं खो सी गयी है।
- शालिनी पाण्डेय
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