Sunday 13 September 2015

I WILL FLY

While I was reading a book by Dr. Kalam, I came across with some very effective line which I would like to share. These lines are written by Persian Sufi poet which was quoted by Dr. Kalam

 
I WILL FLY
 

I am born with potential

i am born with goodness and trust

i am born with ideas and dreams

i am born with greatness

i am born with confidence

I am born with wings

So I am not meant for crawling

I have wings, I will fly

I will fly and fly..

- By Jalaluddin Rumi

क्या राष्ट्रभाषा का प्रयोग देश के विकास के लिए अपरिहार्य हैं ?

सम्पूर्ण भारतवर्ष  में १४ सितम्बर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस के आयोज़न में अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं , इसी तरह के एक कार्यक्र्म का आयोजन महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में भी किया गया और सौभाग्य से मुझे इस कार्यक्रम में अपने विचारों को प्रस्तुत करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।  
हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित वाद विवाद प्रतियोगिता "विषय - राष्ट्रभाषा का प्रयोग  देश के विकास के लिए अपरिहार्य हैं " पर मैंने विषय के विपक्ष में अपने विचार कुछ इस तरह प्रस्तुत किये -

"देश की सीमाओं का आधार हैं भाषा 
मानवता को समुदाय में बाँटती हैं  भाषा 
सोच को संकुचित कर देती है भाषा 
केवल अभिव्यक्ति का माध्यम है भाषा 
इसीलिए देश के विकास का आधार नही हो सकती भाषा "


इससे पहले कि मैं विषय के विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करू मैं  आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहूँगी।
सोचिये अगर राष्ट्रभाषा का प्रयोग देश के विकास के लिए अपरिहार्य है तो क्यों हमें अपनी उच्च शिक्षा अन्य किसी भाषा मैं लेनी पढ़ रही है ?
क्यों आज सभी माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी विद्यालय में पढ़ाने  का स्वपन् देखते हैं ?
क्यों हमारे वैज्ञानिक अपने शोध कार्यो को अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित कर रहे हैं ?
क्यों हम मोबाईल , कम्प्यूटर, स्टेशन , इंटरनेट जैसे दैनिक प्रयोग में आने वाले शब्दों का राष्ट्र भाषा में अर्थ तक नही जानते ?
क्यों हमारी सुबह गुड मॉर्निंग पर शुरू होती है और गुड नाईट पर खत्म होती हैं ?
क्यों हम अपनी माँ को मॉम और पिता को डैड कहने में अधिक गर्व महसूस करते हैं ?
 क्यूंकि हम भाषा का प्रयोग अपनी सुगमता के अनुसार करते है और यही वक्त की माँग है।  भाषा के प्रयोग को हम किसी भी व्यक्ति पर थोप नही सकते , इसीलिए ट्रेन , रेलगाड़ी और लौह पथ गामिनी शब्दों में से शायद  ही  कोई व्यक्ति लौह पथ गामिनी शब्द का प्रयोग करता है।  तो आप हे बताइये इसके प्रयोग से देश के विकास पर कोई प्रभाव पर कोई फर्क पड़ता है क्या ? नहीं इससे देश के विकास पर कोई फर्क नहीं पढ़ता। 


वैष्वीकरण के इस युग  राष्ट्र भाषा द्वारा देश का विकास मुझे दिवा स्वपन स्वरूप प्रतीत होता है।  आज हमारे प्रधानमंत्री महोदय स्वच्छ भारत , स्वस्थ भारत , कुपोषण मुक्त भारत , शिक्षित भारत , डिजिटल भारत द्वारा देश के विकसित होने का स्वपन देखते है।  क्या यह विकास राष्ट्रभाषा के प्रयोग से पूर्ण होगा? नहीं, बिल्कुल नहीं। अपितु  यह विकास का स्वपन उन्नत तकनीकी , नये विचारों , कठिन प्रयासों एवं  दृढ़  निश्चय से संभव होगा।   महोदय मैं राष्ट्र भाषा के प्रयोग के विरूद्ध नही हूँ  और न ही मैं अन्य भाषाओं की पैरवी करना चाह  रही हूँ  , मैं बस इतना बताना चाहती हु कि देश के विकास के लिए सामाजिक , आर्थिक , बौद्धिक , तकनीकी और नैतिक विकास की आवश्यकता है  और यह विकास राष्ट्रभाषा तो क्या किसी भी भाषा का मोहताज़ नही है।  

 प्राचीन वैदिक इतिहास की उपलब्धियों को गिनाकर देश के विकास की कोरी कल्पना कर रहे मेरे विद्वान विपक्षी वक्ता ये क्यों भूल रहे है कि देश का विकास इतिहास को याद करने से नही  होता है  अपितु वर्तमान मैं रहकर भविष्य की रणनीति बनाने से होगा।  आज का युग सूचना क्रांति का युग है।  ज्ञान सर्वत्र विद्यमान है।  आज इंटरनेट पर ज्ञान का  समुद्र विद्यमान है।  अगर हमें  इस ज्ञान रुपी समुद से मोती निकालने  है तो हमें सभी भाषाओं  के  प्रयोग  के  लिए  उदारवादी  होना पड़ेगा, तभी हम नए विचारों का सृजन कर पायेंगे  और देश का विकास कर पायेंगे। 

राष्ट्र भाषा के प्रयोग को देश के विकास के लिए अपरिहार्य मानने  वाले मेरे विद्वान  मित्रों  को मैं स्मरण  दिलाना चाहूंगी  कि  देश का प्रत्येक नागरिक अपने  कार्यों से  देश के विकास में योगदान देता है  ना कि राष्ट्रभाषा के प्रयोग से।  
वैज्ञानिक अपने शोध से ,
डॉक्टर अपनी सेवाओं से,
खिलाड़ी अपने खेल से ,
अभिनेता अपने अभिनय से,
व्यापारी अपने व्यापार  से ,
किसान  फसल उत्पादन से,
साहित्यकार अपने साहित्य से,
विद्यार्थी अपनी विद्या से ,
और मजदूर अपने मजदूरी से ,
देश के  विकास में  योगदान देते हैं ना कि राष्ट्रभाषा के प्रयोग द्वारा।  


देश का विकास सरकार की नीतियों , विभिन्न पदों पर आसीन व्यक्तियों  और  देश की युवा शक्ति की काबिलियत एवं क्षमता पर निर्भर करता है  ना कि राष्ट्रभाषा या अन्य किसी भाषा पर पर।  ज्ञान विज्ञान शोध  विकास  तरक्क़ी  निर्माण  कौशल की कोई भाषा नहीं होती  पर ये सभी देश के विकास मैं योगदान देते हैं।  जब हम भाषा के आधार पर विकास की परिकल्पना करते है तो हम स्वयं को एक सीमा में बांध लेते हैं और भावनाओं के अधीन होकर सोचते हैं।  इससे हम अपनी क्षमताओं को पूर्ण रूप से उपयोग नहीं कर पाते  इसीलिए भाषा को देश के विकास के पैमानों के दायरे में रखना हमारी बहुत बड़ी भूल होंगी।  


राष्ट्रभाषा  द्वारा विकास  की पैरवी  करने वाले मेरे विद्वान  मित्र शायद इस बात से अनभिज्ञ हैं कि आज़ादी , सिर्फ़ , दोस्त , नामुमकिन , इंटरनेट जैसे शब्द जिनके द्वारा वो  राष्ट्रभाषा की पैरवी कर रहे हैं , अन्य भाषाओं से लिए गए हैं।  अब आप ही बताइये जब  आप  अपने  तथ्यों  को राष्ट्रभाषा के प्रयोग द्वारा प्रस्तुत नहीं कर  पा रहे हैं तो किस आधार पर राष्ट्रभाषा के प्रयोग को देश के विकास के लिए अपरिहार्य होने का दावा कर सकते है ? महोदय  राष्ट्रभाषा  निश्चय ही राष्ट्र  की संस्कृति को संजोकर रखने में अपना योगदान दे सकती हैं  ; निःसंदेह हमें अपनी  राष्ट्रभाषा  का सम्मान करना चाहिए , परन्तु इसे देश के विकास से जोड़ना कदापि उचित नहीं हैं क्यूँकि  भाषा के प्रोयोग को किसी भी व्यक्ति पर थोपा नही जा सकता हैं।  


- शालिनी पाण्डेय










DELIVER ME FROM FEAR



I read this inspiring poem written by Dr. A. P. J. Abdul Kalam.These lines always inspire me. So I am sharing it with you all..



Poem was titled- 

DELIVER ME FROM FEAR

 I am not alone,

God is always with me.

If God is for me,

Who can be against?

I sought the Lord, he heard me,

Deliver me from all fears.

Divine cure and divine light penetrated into me,

And cured my pain in body and soul.

Divinity beauty enters into me,

and blossoms into happiness,

When God is for me,

Who can be against?

 


-By Dr. A. P. J. Abdul Kalam

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