Wednesday 15 February 2017

तेरा साथ

आज फिर सांझ ढले तेरी याद आयी
याद किये मैंने तेरे संग बिताये वो लम्हे
हमारी वो पहली मुलाकात
जब सर्दी की एक शाम को हम मिले
दो अजनबियों की तरह
अनेक दुविधाओं के साथ
वो दूर तक फैली लंबी सड़क पर
कुछ पल हम साथ चले।
शायद कुछ बातें भी की होंगी
एक दूसरे को जानने के लिए

इस मुलाकात के बाद शायद
एक सिलसिला सा शुरू हुआ
एक नए रिश्ते का
कभी फ़ोन पर
कभी मैसेज पर
कभी कभी कैंटीन मे
कभी गलियों पर मुलाकात के सहारे
ये रिश्ता चलता रहा

फिर रास्ते अलग हो गए
हम यहाँ तुम वहाँ
जब एक राह पर थे
तो एक दूसरे से अंजान थे
आज राहे अलग है तो
जी चाहता है कि कुछ पल साथ चले।

-शालिनी पाण्डेय

वो रिश्ता

ना जाने क्या रिश्ता है
जो दूर होकर भी दिल के करीब लगता है

समझ नही आता इसे क्या नाम दूँ
इश्क़, मोह्हबत या रूह का रिश्ता

ना एक पल के लिए वो मेरी नजरों से ओझल होता है,
ना ही तेज हवाएं उसकी यादों को मिटा पाती है,

आँखें बंद करू तो लगता है
जैसे उसकी ही तस्वीर बनी है पलकों में
हर एक धड़कन उसके ही राग को गाती है

हर सांस मुझे उसका एहसास कराती
लगता है कि जैसे मुझे पास बुला रही हो।

अजीब सा रिश्ता है ये
इसमें ना कोई कसमें है और ना ही कोई वादें
समझ नही पाती हूँ कि हम किस डोर से इतने बधे हुए है ?

इसमें एक अलग सी अनुभूति है,
जो सिर्फ महसूस की जा सकती है,

यहाँ कभी ख़ामोशी भी इतना कुछ कह देती है,
और कभी लफ़्ज भी कुछ बया नही कर पाते,

जी चाहता है कि सुना दूँ उसे हाले बयां सारा,
लेकिन कमबख्त लफ़्ज है कि सर्द मौसम में जम से गये है।

                               - शालिनी पाण्डेय

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