ना जाने क्या रिश्ता है
जो दूर होकर भी दिल के करीब लगता है
समझ नही आता इसे क्या नाम दूँ
इश्क़, मोह्हबत या रूह का रिश्ता
ना एक पल के लिए वो मेरी नजरों से ओझल होता है,
ना ही तेज हवाएं उसकी यादों को मिटा पाती है,
आँखें बंद करू तो लगता है
जैसे उसकी ही तस्वीर बनी है पलकों में
हर एक धड़कन उसके ही राग को गाती है
हर सांस मुझे उसका एहसास कराती
लगता है कि जैसे मुझे पास बुला रही हो।
अजीब सा रिश्ता है ये
इसमें ना कोई कसमें है और ना ही कोई वादें
समझ नही पाती हूँ कि हम किस डोर से इतने बधे हुए है ?
इसमें एक अलग सी अनुभूति है,
जो सिर्फ महसूस की जा सकती है,
यहाँ कभी ख़ामोशी भी इतना कुछ कह देती है,
और कभी लफ़्ज भी कुछ बया नही कर पाते,
जी चाहता है कि सुना दूँ उसे हाले बयां सारा,
लेकिन कमबख्त लफ़्ज है कि सर्द मौसम में जम से गये है।
- शालिनी पाण्डेय
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