Monday 30 December 2019

चले आते हो

जब
अहसास लोटते है,
शब्द झूलते है,
बूंदे बरसती है,
चित्र बिखरते है,

तुम
शांत चित्त ,
करुणाशील आँखे,
गंभीर स्वभाव,
विशाल हृदय हो,

आँखें मूँदते ही
चले आते हो।

- शालिनी पाण्डेय 

Wednesday 25 December 2019

तुम हो

तुम हो कुछ हासिल, कुछ बेहासिल से
तुम हो थोड़े जिद्दी, थोड़े पागल से

तुम हो थोड़े गम, थोड़ी खुशी जैसे
तुम हो थोड़े रास्ते, थोड़े मंजिल जैसे

तुम हो थोड़े पास, थोड़े दूर जैसे
तुम हो थोड़े मिले, थोड़े खोये जैसे

तुम हो थोड़े धूप, थोड़े बारिश जैसे
तुम हो थोड़े तुम जैसे, थोड़े मुझ जैसे।

~ शालिनी पाण्डेय

खामखा


कभी कभी
जिंदगी उलझ जाती है
बालों की तरह
और मैं 
मेरे उलझे बालों की तरह 
इसे भी रहने देती हूं अनसुलझी ।
अब जब इसे 
उलझने का इतना ही शौक है तो 
क्यूं खामखा इसे सुलझाना??

- शालिनी

मिठास


तुम पास रहो तो मिठास लगती है
तुम्हारे बिना जिंदगी उदास लगती है...
ये माना कि मसले और भी होंगे 
जिनमें तुम मसगूल रहते होगे,
पूनम के चाँद जैसे ही मिल लो कभी
कबसे आँखें तुम्हारा इंतजार करती है...

- शालिनी पाण्डेय 

Monday 23 December 2019

धर्म भक्तों

बिगड़ती अर्थव्यवस्था में
जब नहीं मिलेगा रोजगार,
दिन में कमाने वाले मजदूर 
शाम को खाली हाथ ही लौट जाएंगे,
जब नहींं जल पायेगा रात को
किसी गरीब के घर चूल्हा,

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से
जब पिघल जाएंगे ग्लेशियर,
प्रदूषण बढ़ते-बढ़ते जब
नहीं बचेगी साफ आबोहवा,
ना होगा पीने का पानी,
बंजर हो रहे होंगे खेत-खलिहान,
जब धरती पर नहींं रहेगा  
इंसानियत वाला धर्म.....

धर्म का मतलब समझे बिना ही
चौकस हो जाने वाले भक्तों,
तुम्ही बताओ, 
तब क्या;
तुम किसी भी धर्म की छतरी तले 
आने वाली संतानों को प्रलय से बचा पाओगे??

- शालिनी 

Sunday 22 December 2019

धसता सा इंसान

आधुनिक तकनीकियों से परिपूर्ण 
 कंक्रीट के बनाये इस जंगल में
झुलसते-झुलसते 
मन उलझता जाता है,
भीतर का इंसान, धंसता जाता है...

वहीं, एक पेड़ों से बना जंगल है
जिसकी छांह में 
कुछ देर सुस्ता लेने भर से,
कई उलझनें सुलझ जाती है
और भीतर का धंसता इंसान 
निकलता सा प्रतीत होता है....

- शालिनी 



Saturday 21 December 2019

तुम्हारी ओर

सर्दी की हर शाम,

पहाड़ी के उस ओर,
जिस तरफ तुम रहते हो,
जहाँ सूरज छिपता है...
मैं, इस ओर से
रोज देखती हूँ...
इसे, तुम्हारी ओर आते हुए,

पर, कभी आ ना सकी,
इसके साथ,
तुम्हारी ओर को।

-- शालिनी

Wednesday 18 December 2019

अच्छा लगता है

मुझे,
उसका हाथ थामकर , 
पहाड़ की चोटी 
पर चढ़ना अच्छा लगता है, 

जंगल की गोद से गुजरते हुए
संकरे रास्तों पर 
उलझना अच्छा लगता है,

गिरने पर ,
उसकी हथेली पकड़ कर
सम्भलना अच्छा लगता है,

किसी पत्थर पर बैठ 
गुनगुनी धूप सेंकते हुए
सुस्ताना अच्छा लगता है,

देर तक यूं ही 
बेवजह उसकी तरफ 
देखे रहना अच्छा लगता है,

उसका नाम पुकारने पर,
पहाड़ से गूंज कर,
लौटने वाली आवाज़ को
सुनते रहना, अच्छा लगता है. 

- शालिनी

Friday 6 December 2019

पहाड़ बुलाता है

पहाड़ बुलाता है,
हर गुजरते हुए,
आदमी को,
फैलाता है,
अपनी गोद,
बिछा देता है,
अपना आंचल...

देखो,
पहाड़ पालता है,
अपने गर्भ में,
ऊंचे देवदार को,
उफनते नदी-नालों को, 
और
अपनी ओट में 
उगा लेता है काई..

तो, क्या?
हम और तुम,
नहीं पल पाते,
इसके आंचल तले???

- शालिनी पाण्डेय 

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...