हर गुजरते हुए,
आदमी को,
फैलाता है,
अपनी गोद,
बिछा देता है,
अपना आंचल...
देखो,
पहाड़ पालता है,
अपने गर्भ में,
ऊंचे देवदार को,
उफनते नदी-नालों को,
और
अपनी ओट में
उगा लेता है काई..
तो, क्या?
हम और तुम,
नहीं पल पाते,
इसके आंचल तले???
- शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...
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