Friday 22 May 2020

उदासियां

खिड़कियों को लाँघ कर
किवाड़ों को फांद कर
झरोखे की जालियों से
भीतर चली आती है उदासियां

उन्हें कोई बुलावा नहीं देता
इसलिए, बेवक़्त 
आ जाया करती है उदासियां।

- शालिनी पाण्डेय 

Saturday 16 May 2020

लॉकडाउन, कोरोना और सामाजिक दूरी के किस्से: 1

लॉकडाउन, कोरोना और सामाजिक दूरी के किस्से

दोपहर की धूप में वो सड़क किनारे पड़े कचरे में से अपने काम की चीजें इकट्टा कर रहा था। कुछ खाली बोतल, कुछ गत्ते के टुकड़े उसने बीन कर अपनी साईकल के दोनों तरफ लगाये बड़े से  एक कट्टे में भर लिए।
कुछ देर के लिए उसका चेहरा मेरी तरफ को मुड़ा। उसके बाल कुछ काले कुछ सफेद से थे, वो सवरे हुए नहीं थे। नाक को ढकने के लिए, एक चेक वाला रुमाल उसने चेहरे पर बांंधा हुआ था। उसके कपड़े और हाथों पर काफी धूल जमा थी। 
काम की चीजों को बीन लेने के बाद आगे बढ़कर, उसने साईकल को सड़क के किनारे एक छाव पर लगाया, उसी जगह जहां पहले चाय की टपरी हुआ करती थी लॉकडाउन से पहले। एक छोटी प्लाटिक की खाली बोतल उसने अपने साईकल के आगे वाले बैग में से निकली और वो दूध की दुकान के सामने की ओर कुछ कदम चला। सामने एक पानी का नल था, उसने टोटी खोली लेकिन पानी नहीं आया। दुकान में से एक बच्चा बाहर आया और बच्चे ने पास लगे मोटर के बटन को दबाया और पानी की एक धार उसके हाथों पर गिरने लगी। उसने सिर्फ पानी से अपने हाथ धोये और अपनी छोटी सी बोतल में पानी भरकर पीने लगा। फिर उसने खाली बोतल को अपने साईकल के आगे लटके हुए बैग में वापस रख लिया। और वो फिर से निकल पड़ा कुछ और काम की चीजें बीनने अगली सड़क के किनारे रखे कचरा पात्र की ओर।


- शालिनी पाण्डेय

Friday 15 May 2020

एक वक्त था

एक वक्त था
जब शाम कल्पनाओं में 
डूबी रहती थी
छुट्टी का दिन 
घाट किनारे गुजारा जाता था

एक वक्त था
जब तुम्हें सामने पाकर 
खुशियां सम्हाले ना सम्हलती थी
चाय पर बातों का सिलसिला 
खत्म नहीं होता था

और अब सिर्फ वक़्त है
ना बातें है, ना तुम हो, 
ना घाट का किनारा, 
ना ही रंगीन शामें है...

अब बस इन्तज़ारी है
हालातों के सुधर जाने की
और किसी रोज फिर से
तुम्हें गले लगाने की।

- शालिनी पाण्डेय 

Thursday 14 May 2020

मजदूर

जब आर्थिक गतिविधियां
चालू थी
तब मजदूर जुटे हुए थे
हम सभी के घरों की 
नींव और छतों को बनाने में

और अब 
जब सब कुछ रुका हुआ है 
वो चले जा रहे है मीलों दूर
उन घरों की ओर
जिनके भीतर इस बरसात भी
पानी घुस आएगा...

- शालिनी पाण्डेय 

संभावनाएं

जटिल परिस्थिति,
घनघोर उदासी
और अनमनेपन से
बिखर रहे जीवन को;

तुम्हारा साथ 
नई संभावनाओं,
उजली आशाओं से
भर जाता है.... 

- शालिनी पाण्डेय

Sunday 10 May 2020

नदी और नाव

तुम्हारा और मेरा प्रेम है
नदी और नाव का संयोग..

तुम विशाल, 
अविरत बहने वाली
नदी हो 
और मैं लकड़ी से बनी
तुम्हारे ऊपर ठहरी हुई
नाव हूं

मेरे बिना भी
तुम हो और रहोगे...
लेकिन तुम्हारे बगैर
मेरा हो पाना तो संभव नहीं...

- शालिनी पाण्डेय

Thursday 7 May 2020

सफेद दीवार

जिंदगी, कमरे की उस सफेद चमकती दीवार की तरह हो चली है, जिस पर गोंद के दाग छूटे रह जाने के डर से, हम अपनी पसंदीदा तस्वीरें और पोस्टर चिपकाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।

- शालिनी पाण्डेय

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...