Wednesday 28 November 2018

रिक्तता

कही भीतर कुछ है
जो भरने की
कोशिश में लगा है
पर इसके बावजूद भी
खाली सा रह जाता है।

दिन की रोशनी में
लगता है पूरा हो रहा है
लेकिन रात फिर इसे
अधूरा कर जाती है

क्या ये तुम्हारे आने
से भरेगा?
या तब भी
खाली ही रहेगा?

- शालिनी पाण्डेय

Monday 26 November 2018

मैं तुझे जोड़ देती हूं

मैं तुझे जोड़ देती हूं
हर उस कविता से
हर उस कहानी से
हर उस गीत से
जिनमें आस है
मिलन की

मैं तुझे जोड़ देती हूं
हर उस शेर से
हर उस ग़ज़ल से
हर उस दृश्य से
जिसमें टीस है
बिछड़न की

मैं तुझे जोड़ देती हूं
हर उस अल्फ़ाज़ से
हर उस ख़्याल से
हर उस खामोशी से
जिसमें कसमकस है
तुझे समझने की।

-शालिनी पाण्डेय

Thursday 22 November 2018

टक्कर

राह चलते
वो मुझसे टकराई
थोड़ा पास आयी
और मुस्काई

मेरी रूह
बेनूर हो गई
नजदीकियां जब
यूँ टकराई

-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 21 November 2018

कौन

मैं कौन हूं?
ये प्रश्न बार बार
मेरे सामने आता है

कई बार खुद ब खुद
कई बार लाया जाता है

मैं कविता हूं
नहीं, मैं कहानी हूं
जिसका अंत होता है

मैं क्या हूं?
क्या मैं सचमुच
कुछ हूं?

क्या मैं जरूरी हूं
नहीं-नहीं
मैं तो यूँ ही हूं
जैसा होना होता है।

-शालिनी पाण्डेय

वक़्त के इंतजार में

वक़्त के इंतजार में
दो राही
ताक रहे थे राह

सोच रहे थे
कब आएगी
राहें वो आसान

ठहरे रहे
आस लिए
पर ढल गयी
जीवन की सांझ

अब यूं ही
सबके लिए
थोड़े आती
राहें वो आसान।

-शालिनी पाण्डेय

मैं

मैं तुम्हें बुनना चाहती थी
लेकिन तुम उधड़ते गए
मैं सम्हलना चाहती थी
लेकिन गिरती रही

मैं सुंदरता चाहती थी
लेकिन जर्जर होती गई
मैं तुम्हें सांसें देना चाहती थी
लेकिन जल कर खाक होती रही

अजीब चाह थी
मैं तुम बनना चाहती थी
पर ना तुम ही बन सकी
और ना मैं ही रह गई।

-शालिनी पाण्डेय

मैं चाहती थी

मैं चाहती थी
तुम्हारी बाहें थामे
लंबी सड़क पे चलना ।
तेरे काँधे पर सिर टिकाये
समुद्र को देखना ।

मैं चाहती थी
तुम्हारे साथ तन्हाई के
कुछ लम्हें बांटना ।
सीमाओं को लांघकर
तुम्हारे करीब आना।

मैं चाहती थी
तुम्हारे लिए कुछ बुनना
जिसे तुम दुख में ओढ़ पाते।
कुछ ऐसा लिखना
जिसे तुम संजो के रख पाते ।

मैं चाहती थी
तुम्हारे साथ दिल खोल के हँसना
और दिल खोल के रोना ।
चाहती थी तुम्हारे बालों के रंग को
बदलते हुए देखना ।

मैं चाहती थी
तुम्हारे माथे पर आने वाली
हर शिकन की तस्वीर बनाना ।
घर के हर एक कोने को
तुम्हारे चित्रों से सजाना ।

शायद
मैं और भी बहुत कुछ चाहती थी
लेकिन तुम्हारी उस चुप्पी ने
इन चाहतों को मुझसे दूर कर दिया।

-शालिनी पाण्डेय

टूटना

मैं बिगाड़ देना चाहती हूं
तुम्हारे चित्र को
लेक़िन इस क़यास में
वो बनता ही जाता है ।

मैं बिखेर देना चाहती हूं
तुम्हारे होने के अहसास को
पर हर बिखराव के साथ
वो गहराता जाता है।

बार-बार मैं टूटती हूँ
टूट टूटकर गिरती हूं
और जितना मैं टूटती हूँ
तुम उतने ही विशाल होते जाते हो।

-शालिनी पाण्डेय

तुम

तुम हमेशा भागते रहे
मुझसे और इस करीबी से

लेकिन मैं कहाँ जाती
मेरे पास तो ये भी नहीं बचा।

अब तुम ही बताओ
क्या कोई खुद से भाग पाया?

-शालिनी पाण्डेय

तुम

जब तुम थक जाओगे
लुक्का छिप्पी खेलते हुए
या फिर पा लोगे उसे
खोजते खोजते

शायद तब तुम अहसास हो
मैंने तुम्हें पहले ही
खोज लिया था
बस तुम ही नहीं समझे।

-शालिनी पाण्डेय

Saturday 17 November 2018

मैं तुझे खोजती हूं

मैं तुझे खोजती हूं,
हर जगह खोजती हूं,
कोरे पन्नों में,
उर्दू के हर्फों में,
पाश की कविताओं में,
साहिर के गीतों में,
जगजीत की गज़लों में,
जॉन के शेरों में,
रेख़्ता की शायरी में,
आषाढ़ के एक दिन में,

इतना ही काफी नहीं
मैं फिर तुझे खोजती हूं
गलियों में,
तस्वीरों में,
अनजान चेहरों में,
बातों में,

मैं तुझे ढूढ़ती हूं
कांपती ठंड में,
घुप अंधेरे में,
बीतते पलों में,
आते ख्यालों में,

खुद को भी इतना नहीं खोजा
जितना तुझे खोजती हूं
जाने क्यूं मैं बार - बार
तुझे ही खोजती हूं।


-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 14 November 2018

तठस्थता

तुम्हारे दूर होने पर भी
मैं भावों में डूबी रहती हूं
और मेरे समीप होने पर भी
तुम इतने तटस्थ कैसे रह लेते हो?

-शालिनी पाण्डेय 

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...