मैं चाहती थी
तुम्हारी बाहें थामे
लंबी सड़क पे चलना ।
तेरे काँधे पर सिर टिकाये
समुद्र को देखना ।
मैं चाहती थी
तुम्हारे साथ तन्हाई के
कुछ लम्हें बांटना ।
सीमाओं को लांघकर
तुम्हारे करीब आना।
मैं चाहती थी
तुम्हारे लिए कुछ बुनना
जिसे तुम दुख में ओढ़ पाते।
कुछ ऐसा लिखना
जिसे तुम संजो के रख पाते ।
मैं चाहती थी
तुम्हारे साथ दिल खोल के हँसना
और दिल खोल के रोना ।
चाहती थी तुम्हारे बालों के रंग को
बदलते हुए देखना ।
मैं चाहती थी
तुम्हारे माथे पर आने वाली
हर शिकन की तस्वीर बनाना ।
घर के हर एक कोने को
तुम्हारे चित्रों से सजाना ।
शायद
मैं और भी बहुत कुछ चाहती थी
लेकिन तुम्हारी उस चुप्पी ने
इन चाहतों को मुझसे दूर कर दिया।
-शालिनी पाण्डेय
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