मैं तुम्हें बुनना चाहती थी
लेकिन तुम उधड़ते गए
मैं सम्हलना चाहती थी
लेकिन गिरती रही
मैं सुंदरता चाहती थी
लेकिन जर्जर होती गई
मैं तुम्हें सांसें देना चाहती थी
लेकिन जल कर खाक होती रही
अजीब चाह थी
मैं तुम बनना चाहती थी
पर ना तुम ही बन सकी
और ना मैं ही रह गई।
-शालिनी पाण्डेय
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