Saturday 17 November 2018

मैं तुझे खोजती हूं

मैं तुझे खोजती हूं,
हर जगह खोजती हूं,
कोरे पन्नों में,
उर्दू के हर्फों में,
पाश की कविताओं में,
साहिर के गीतों में,
जगजीत की गज़लों में,
जॉन के शेरों में,
रेख़्ता की शायरी में,
आषाढ़ के एक दिन में,

इतना ही काफी नहीं
मैं फिर तुझे खोजती हूं
गलियों में,
तस्वीरों में,
अनजान चेहरों में,
बातों में,

मैं तुझे ढूढ़ती हूं
कांपती ठंड में,
घुप अंधेरे में,
बीतते पलों में,
आते ख्यालों में,

खुद को भी इतना नहीं खोजा
जितना तुझे खोजती हूं
जाने क्यूं मैं बार - बार
तुझे ही खोजती हूं।


-शालिनी पाण्डेय

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