वक़्त के इंतजार में
दो राही
ताक रहे थे राह
सोच रहे थे
कब आएगी
राहें वो आसान
ठहरे रहे
आस लिए
पर ढल गयी
जीवन की सांझ
अब यूं ही
सबके लिए
थोड़े आती
राहें वो आसान।
-शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...
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