Skip to main content

दीवार में एक खिड़की रहती थी- पुस्तक समीक्षा

‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ विनोद कुमार शुक्ल जी का लिखा हुआ एक उपन्यास है। इस उपन्यास को वर्ष 1999 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। शुक्ल जी द्वारा लिखित, मेरे द्वारा पढ़ा गया यह पहला उपन्यास है। यह उपन्यास लंबे समय से मेरी पठन सूची में था, लेकिन इसे पढ़ना उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त होने के बाद ही संभव हो पाया। यह उपन्यास काफी संक्षिप्त है, केवल 250 पन्नों का।

यह उपन्यास अपने नाम की तरह ही अनोखा है। इसे पढ़ते हुए लगता है जैसे हम किसी ठहरे हुए, धीमे-धीमे खुलते जीवन के भीतर प्रवेश करते जा रहे हों। उपन्यास की कहानी एक निम्न मध्यम वर्ग के साधारण किरदार रघुवर प्रसाद (गणित के प्राध्यापक) और सोनसी से संबंधित है, जो अपने एक छोटे-से कमरे में रहते हुए, रोज़मर्रा की दिक़्क़तों के बीच अपने सपनों और भावनाओं के लिए जगह तलाशते हैं। उपन्यास में दीवार और खिड़की केवल ईंट-पत्थर की चीज़ें ना हो कर, एक प्रतीक हैं। दीवार प्रतीक है - स्थिरता, बंधन और रोज़मर्रा के जीवन का, जबकि खिड़की प्रतीक प्रत्येक है- संभावना, उम्मीद और खूबसूरती का। दीवार में रह रही यह खिड़की हमारे जीवन का खुलापन बनाये रखती है और बाहर की दुनिया से हमें जोड़े रहती है । 

शुक्ल जी की लेखनी की खास बात यह है कि वह साधारण चीजों और घटनाओं के बड़े असाधारण से अर्थ, पढ़ने वाले के लिए खोज लाते हैं। इस उपन्यास की भाषा और कहानी काफी सरल होते हुए भी दार्शनिक जैसी मुझे महसूस हुई। उनके द्वारा चुने गए शब्दों के प्रतीक सरल भाषा में गहरी बात कह जाते हैं। इस उपन्यास ने मुझे सोचने और समझने का समय दिया कि जीवन को केवल गिनती हिसाब और कैलेंडर में बात कर नहीं देखना चाहिए। अगर हम जीवन को कितने दिन हो गए की तरह देखते रहेंगे तो उसकी असली खूबसूरती को शायद ही कभी हम महसूस कर पाए। इस उपन्यास के शीर्षक के जैसे ही हमें भी अपने आम जीवन की चारदिवारी पर कल्पना, कला, विचारों और उम्मीद की एक ऐसी खिड़की बना लेनी चाहिए जो जीवन के सख्त, शुष्क, बेरंग और मुश्किल हालात में हमारे भीतर प्यार, दोस्ती, साहस और ऊर्जा के रंग भर सके। उपन्यास ने मुझको अपने जीवन, समय और अनुभव के बारे में सोचने पर मजबूर किया। जीवन में अच्छे दिनों की गिनती करते हुए अपने जीवन को दीवारों में बंद करने की अपेक्षा अगर हम हर दिन को खुलेपन,  अनुभव और रचनात्मकता से देखने का प्रयास करें तो निश्चित ही हमें हवा और रोशनी प्रदान करने वाली ऐसी खिड़की प्राप्त हो सकती है।  

यह साहित्य की एक ऐसी रचना है जो संक्षिप्त होते हुए भी काफी व्यापक अर्थ लिए हुए हैं और यह पढ़ने वाले को अपने अस्तित्व को गहराई से महसूस करने पर मजबूर करती है। इसे पढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि जीवन की कठिनाइयों और बंदिशें में भी हमारे भीतर एक स्वच्छंद रहने वाली खिड़की सदैव खुली रहनी चाहिए। शुक्ल जी का यह उपन्यास हमें संदेश देने का प्रयास करता है कि जीवन की सीमाएं और बंधन चाहे कितने भी बड़े हो उनके भीतर भी हमेशा एक खिड़की मौजूद रहती है जहां से अनंत संभावनाएं आती रहती है। जीवन की शुष्क दीवार में संभावनाओं की एक खिड़की हमेशा खुली हुई रहती है। इसलिए आप सभी भी इस उपन्यास को पढ़िए और खोजिए अपने भीतर की शुष्क हो चुकी दीवार में संभावनाओं की एक ऐसी ही खिड़की को।

डॉ० शालिनी पाण्डेय 





Comments

  1. जीवन में जब तक संभावनाओं की खिड़की मौजूद है तब तक वह जीवंत है।
    विचारों की अभिव्यक्ति का एक बेहतरीन माध्यम आपने चुना है उसके आपको शुभकामनाएं

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

यात्रवृतान्त - आदि कैलाश और ॐ पर्वत ट्रैक

कई बार ऐसा होता है कि हम अपने रोजमर्रा के कार्यों में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हम अपनी हॉबीज की तरफ ध्यान देना लगभग भूल सा जाते हैं ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ लेकिन नव वर्ष पर मुझे पुनः प्रेरणा प्राप्त हुई की जिस कारण मैंने सोचा कि आज मैं आदि कैलाश और ओम पर्वत का जो ट्रैक मैंने 2023 के सितंबर महीने में  11- 13  तारीख़ को  किया था उसके विषय में लिखने का प्रयास करूँ। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, उत्तराखंड के प्रत्येक स्थान पर अनेकों देवी देवताओं का वास है। अगर बात करें कुमाऊं क्षेत्र की तो यहां पर भी अनेक प्रकार के देवी देवता विराजमान है। कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ धारचूला से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित व्यास घाटी तथा चौंदास घाटी अपने आप में एक रमणीय स्थान है। यह स्थान इतने खूबसूरत हैं कि इन्हें देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि पुराणों तथा हिंदू ग्रंथो में वर्णित स्वर्ग की संज्ञा इन्हें देना अनुचित होगा। ओम पर्वत/आदि कैलाश ट्रैक की शुरुआत धारचूला से होती है। धारचूला 940 मीटर की  ऊँचाई पर स्थित एक हिमाल...

Story of Trekking Kedarkantha Summit

Kedarkantha summit is located in Uttarkashi district of Garhwal Himalayas in the state of Uttarakhand. It comes under Govind Ballabh Pant Wildlife Sanctuary area. The trek is marked with well-marked trails, gradual ascents, snow-clad peaks, and the early morning summit push and well-placed campsites. This high altitude trek is an easy one, popular winter trek and it requires three days to complete from the village Sankri. If you want to do this track from Dehradun, it will take around five days and four nights. This track is a busy one and you will get basic amenities like water, food, tea, snacks very easily at various tea point located during the track route, though the prices are bit high than MRP, but you will get everything in this track. Day 1      On first day, we covered a total distance of 220 km from Dehradun to Sankri Village. In order to reach Sankri Village we took a traveller that was booked by our travel company. We were ready by morning 6 and were excited...