Thursday 27 April 2017

वो चेहरा

वो चेहरा
कितना जाना पहचाना सा
ऊर्जावान और आशावादी
धैर्यशील और उद्गामी

कैसे जुटा रहता है दिन रात
मेरी खुशियों के लिए
हर दिन भागता दौड़ता
मेरे आराम के लिए
धूप में निरंतर तप रहा
मुझे छांव करने को
हर बारिश में भीग रहा
मुझे छत देने को
एक एक पाई जोड़ रहा
मुझ पर खर्च करने को

काट रहा है अपना जीवन चंद सुविधाओं में
जी रहा है अपने सपने मेरी आँखों में
अभी थोड़े बाल सफेद हो गये तो क्या
चेहरे पर कुछ झुर्रियां घिर आई तो क्या
प्रफुल्लित है वो आईने में मेरी सूरत देख

अपने जीवन की आपाधापी में
शायद मैं देख ही नही पायी
उस चेहरे की खूबसूरती को
अनुभव ही नही कर पाई
उसके त्याग और स्नेह को
पहचान ही ना सकी कि
वो मेरे सपनों के लिए जिया
और निरंतर जी रहा है

आगे क्या होगा
नही जानती
उसके त्याग का मूल्य चुका पाऊंगी
बता पाना है मुश्किल
लेकिन ये विश्वास है
जिसको तूने कलम पकड़ना सिखाया
तेरा नाम क़लम से स्वर्णिम अक्षरों में लिखेगी।

-शालिनी पाण्डेय

Tuesday 25 April 2017

तलाश

ये तलाश ना जाने होगी कब पूरी
तलाश भीड़ में अपनों को खोजने की
तलाश खामोशी में शब्दों को बुनने की
तलाश सन्नाटे में संगीत पनपने की
तलाश हर चेहरे में खुशियां ढूढ़ने की

अजीब सी तलाश है यह जो
हर वक़्त कुछ खोजना चाहती है
हर लम्हे को यादगार बनाना चाहती है
हर करीबी पर खुशियां बरसाना चाहती है

एक पल को लगता है
कितनी व्यर्थ है ये तलाश
कितनी बड़ी मूर्खता है य
इसका कुछ मुक़ाम नही
इससे कुछ हासिल नही

फिर महसूस होता है
मुक़ाम नही है तो क्या हुआ
कुछ हासिल ना हो तो क्या
कम से कम एक राह तो है
जो जीवन को दिशा दिखा रही है।

- शालिनी पाण्डेय

Friday 21 April 2017

प्यार

प्यार यूं तो है एक नन्हा सा अल्फ़ाज़,
लेकिन है इसमें जीवन के सारे साज़,

ना हैं ये किसी इंसान या वस्तु के लिए पागलपन का नाम,
ना ही कुछ देने या लेने वाले किसी रिश्ते का नाम।

ये तपती रूह पे गिरने वाली एक पानी के बूंद जैसा है,
जिसे ना छुआ जा सकता है, ना देखा जा सकता है,
जिसे ना दिया जा सकता है, ना लिया जा सकता है,
ना इकठ्ठा किया जा सकता है, ना बांटा जा सकता है,
ये है एक ऐसे ही किसी स्पर्श का नाम,
एक ऐसा एहसास,
जो भीड़ में भी चुपचाप तुम्हे छूकर निकल गया,

एक ऐसा एहसास ,
जो पहुँचाता तुम्हे संगीत की उन गहराइयों में
जो पहले कभी थी ही नहीं,
दिखाता तुम्हारे चश्में से वो
जो तुम पास होकर भी देख ना सके,
बताता पलके बंद करके ही वो
जिसे खुली आँखों से देखने की कर रहे थे कोशिश,

हो सकते है इसे अनुभव करने के माध्यम अलग
लेकिन इसका अनुभव एक सा है - अद्भुद
और शायद यही वो एहसास है जो
शब्दों को कलम से बाँधने की कला से तुम्हे नवाजता है,
वरना भला प्यार को कोई बाँध पाया है।

- शालिनी पाण्डेय

Monday 17 April 2017

बुरा दौर


कौन है वो
जीवन में जिसके बुरा वक्त ना आता?
कौन है वो
जिसे ये एक पल के लिए अपाहिज ना बनाता?

रावण हो या राम
हिटलर हो या ग़ालिब
इसने किसको है बख्शा

जीवन में सबके
अलग तरह के बुरे दौर है आते
तबीयत नासाज़ वाले
फैल इम्तेहान वाले
बेरंग पेशे वाले
टूटे रिश्तों वाले

इनके असर भी निराले है
कुछ का तन पर
कुछ का मन पर
कुछ का दिमाक पर
कुछ का रूह पर

पर देख सको तो
इस दौर में है एक ख़ूबी
ये आपको खुद के और करीब है ले जाते
आप तराश पाते है दफ्न हो चुके मैं को।

इसीलिए आज दौर बुरा है तो क्या
तू बस जश्न मना
नए सवेरे की रौशनी इसे अपने आगोश में भरकर
तुझसे दूर कर ही देगी।

-शालिनी पाण्डेय

Saturday 15 April 2017

इम्तिहान

ना जाने अभी कितने और इम्तिहान बाकी है?

आते ही वजूद बनाने का इम्तिहान,
और फिर उसे साबित करने का,
कभी ज्ञान अर्जित करने की कसौटी,
तो कभी जीविका अर्जित करने की,

कभी अंतर् और बाह्य विचारों का द्वंद
कभी मन और मस्तिष्क का द्वंद
फिर निर्भरता और आत्मनिर्भरता की टकरार
तर्कों और भावनाओं की तकरार
प्रत्यक्ष दिखने वाली नवीनता और जड़ता की जंग
ये सब इम्तिहान ही तो है
कुछ छोटे कुछ बड़े

मुझे तो लगा था
कुछ ही इम्तिहान होंगे,
लेकिन अब समझ आता है
ये तो एक दौर है,
अभी उतने ही इम्तिहान बाकी है
शायद जितनी मेरी साँसे।

-  शालिनी पाण्डेय

Friday 14 April 2017

तपती रूह

आज फिर तेरी याद आई,
दर्द के सैलाब से आंखें भर लाई।
हर बदलती करवट के साथ
तेरी थपकी याद आईं।
हर एक छूटती सांस के साथ
तन्हाई और गहराई।

फिर याद आया मुझे ममता का वो आँचल।
जी किया कि
थाम ले तू इन भारी सांसों को
फेर दे अपना हाथ इन लटाओं पर
चूम ले प्यार से मेरा माथा।

काश! मिल जाए मुझे तेरे स्पर्श का अनुभव
मिलेगी शायद तब इस तपते मन को राहत
आ लगा जा इन जलते जख़्मों पर
अपनी करुणा का मरहम
आ प्यार से भर ले मुझे अपने आगोश में

मुझे डर है
इस दर्द मैं कही बिखर ना जाऊं
अपने मनोबल से टूट ना जाऊं
कहीं जीने से भटक ना जाऊं

ए मेरे खुदा बस यही दरख़्वास्त है
एक बार, भले ही सपनों में आ और
इस तपती रूह पर ममता का जल बरसा जा।

- शालिनी पाण्डेय

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...