Tuesday 25 April 2017

तलाश

ये तलाश ना जाने होगी कब पूरी
तलाश भीड़ में अपनों को खोजने की
तलाश खामोशी में शब्दों को बुनने की
तलाश सन्नाटे में संगीत पनपने की
तलाश हर चेहरे में खुशियां ढूढ़ने की

अजीब सी तलाश है यह जो
हर वक़्त कुछ खोजना चाहती है
हर लम्हे को यादगार बनाना चाहती है
हर करीबी पर खुशियां बरसाना चाहती है

एक पल को लगता है
कितनी व्यर्थ है ये तलाश
कितनी बड़ी मूर्खता है य
इसका कुछ मुक़ाम नही
इससे कुछ हासिल नही

फिर महसूस होता है
मुक़ाम नही है तो क्या हुआ
कुछ हासिल ना हो तो क्या
कम से कम एक राह तो है
जो जीवन को दिशा दिखा रही है।

- शालिनी पाण्डेय

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