Friday 14 April 2017

तपती रूह

आज फिर तेरी याद आई,
दर्द के सैलाब से आंखें भर लाई।
हर बदलती करवट के साथ
तेरी थपकी याद आईं।
हर एक छूटती सांस के साथ
तन्हाई और गहराई।

फिर याद आया मुझे ममता का वो आँचल।
जी किया कि
थाम ले तू इन भारी सांसों को
फेर दे अपना हाथ इन लटाओं पर
चूम ले प्यार से मेरा माथा।

काश! मिल जाए मुझे तेरे स्पर्श का अनुभव
मिलेगी शायद तब इस तपते मन को राहत
आ लगा जा इन जलते जख़्मों पर
अपनी करुणा का मरहम
आ प्यार से भर ले मुझे अपने आगोश में

मुझे डर है
इस दर्द मैं कही बिखर ना जाऊं
अपने मनोबल से टूट ना जाऊं
कहीं जीने से भटक ना जाऊं

ए मेरे खुदा बस यही दरख़्वास्त है
एक बार, भले ही सपनों में आ और
इस तपती रूह पर ममता का जल बरसा जा।

- शालिनी पाण्डेय

2 comments:

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...