Skip to main content

तपती रूह

आज फिर तेरी याद आई,
दर्द के सैलाब से आंखें भर लाई।
हर बदलती करवट के साथ
तेरी थपकी याद आईं।
हर एक छूटती सांस के साथ
तन्हाई और गहराई।

फिर याद आया मुझे ममता का वो आँचल।
जी किया कि
थाम ले तू इन भारी सांसों को
फेर दे अपना हाथ इन लटाओं पर
चूम ले प्यार से मेरा माथा।

काश! मिल जाए मुझे तेरे स्पर्श का अनुभव
मिलेगी शायद तब इस तपते मन को राहत
आ लगा जा इन जलते जख़्मों पर
अपनी करुणा का मरहम
आ प्यार से भर ले मुझे अपने आगोश में

मुझे डर है
इस दर्द मैं कही बिखर ना जाऊं
अपने मनोबल से टूट ना जाऊं
कहीं जीने से भटक ना जाऊं

ए मेरे खुदा बस यही दरख़्वास्त है
एक बार, भले ही सपनों में आ और
इस तपती रूह पर ममता का जल बरसा जा।

- शालिनी पाण्डेय

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

यात्रवृतान्त - आदि कैलाश और ॐ पर्वत ट्रैक

कई बार ऐसा होता है कि हम अपने रोजमर्रा के कार्यों में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हम अपनी हॉबीज की तरफ ध्यान देना लगभग भूल सा जाते हैं ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ लेकिन नव वर्ष पर मुझे पुनः प्रेरणा प्राप्त हुई की जिस कारण मैंने सोचा कि आज मैं आदि कैलाश और ओम पर्वत का जो ट्रैक मैंने 2023 के सितंबर महीने में  11- 13  तारीख़ को  किया था उसके विषय में लिखने का प्रयास करूँ। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, उत्तराखंड के प्रत्येक स्थान पर अनेकों देवी देवताओं का वास है। अगर बात करें कुमाऊं क्षेत्र की तो यहां पर भी अनेक प्रकार के देवी देवता विराजमान है। कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ धारचूला से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित व्यास घाटी तथा चौंदास घाटी अपने आप में एक रमणीय स्थान है। यह स्थान इतने खूबसूरत हैं कि इन्हें देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि पुराणों तथा हिंदू ग्रंथो में वर्णित स्वर्ग की संज्ञा इन्हें देना अनुचित होगा। ओम पर्वत/आदि कैलाश ट्रैक की शुरुआत धारचूला से होती है। धारचूला 940 मीटर की  ऊँचाई पर स्थित एक हिमालयी क़स्बा है जिसके

एकांत

समाजशास्त्र का आधारभूत सिद्धान्त कहता है - "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है"। इसलिए प्रत्येक मनुष्य लोगों के एक समूह से हमेशा ही घिरा रहता है। वह साथ ढूंढता है, छोटे समय काल और जीवन भर के लिए । साथ की उपस्थिति वह सुरक्षित अनुभव करता है।  किन्तु मुझे लगता है सामाजिक प्राणी होने के साथ-साथ मानव एकांत प्रिय प्राणी भी है। कई बार ऐसा होता है, लोगों के समूह से घिरे रहते हुए आपके व्यवहार या सोच में कुछ बाहर से चीजें आ जाती है, जो आपकी अपनी वास्तविक स्वाभाविक नहीं होती। एकांत ही वो समय है जब हम अपने भीतर से संवाद करते  है और खुद को बाहरी आवरण से पृथक कर पाते है। साथ ही एकांत हमें मौका देता है अपने भावों को डूबकर महसूस करने का । चाहे वह भाव कोई भी हो- प्रेम, दुःख, ईर्ष्या, क्रोध, आदि। जब हम भाव को पूरी तन्मयता के साथ महसूस करते है तो हम उसके साथ साम्य स्थापित कर पाते है।  इसलिए जब कभी भी लगे कि वास्तविक आप कहीं खो रहे है या भावों से सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे तो एकांत को चुनिए। एकांत में कई खूबियां है, एकांत के ताप में जलकर ही आप शांत चित्त पा सकेंगे।  - शालिनी पाण्डेय