Saturday 15 April 2017

इम्तिहान

ना जाने अभी कितने और इम्तिहान बाकी है?

आते ही वजूद बनाने का इम्तिहान,
और फिर उसे साबित करने का,
कभी ज्ञान अर्जित करने की कसौटी,
तो कभी जीविका अर्जित करने की,

कभी अंतर् और बाह्य विचारों का द्वंद
कभी मन और मस्तिष्क का द्वंद
फिर निर्भरता और आत्मनिर्भरता की टकरार
तर्कों और भावनाओं की तकरार
प्रत्यक्ष दिखने वाली नवीनता और जड़ता की जंग
ये सब इम्तिहान ही तो है
कुछ छोटे कुछ बड़े

मुझे तो लगा था
कुछ ही इम्तिहान होंगे,
लेकिन अब समझ आता है
ये तो एक दौर है,
अभी उतने ही इम्तिहान बाकी है
शायद जितनी मेरी साँसे।

-  शालिनी पाण्डेय

3 comments:

  1. अभी उतने ही इम्तिहान बाकी है
    शायद जितनी मेरी साँसे।
    वाह।।।

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  2. These all are opportunities.. Some major, some minor everyday.

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