शब्द झूलते है,
बूंदे बरसती है,
चित्र बिखरते है,
शांत चित्त ,
करुणाशील आँखे,
गंभीर स्वभाव,
विशाल हृदय हो,
चले आते हो।
तुम हो कुछ हासिल, कुछ बेहासिल से
तुम हो थोड़े जिद्दी, थोड़े पागल से
तुम हो थोड़े गम, थोड़ी खुशी जैसे
तुम हो थोड़े रास्ते, थोड़े मंजिल जैसे
तुम हो थोड़े पास, थोड़े दूर जैसे
तुम हो थोड़े मिले, थोड़े खोये जैसे
तुम हो थोड़े धूप, थोड़े बारिश जैसे
तुम हो थोड़े तुम जैसे, थोड़े मुझ जैसे।
~ शालिनी पाण्डेय
तुम चलो ना मेरे साथ
किसी पहाड़ पर,
वहीं बसायेंगे संसार
प्यार और विश्वास का ।।
वहां
बर्फ की नदियां सींचती
होंगी हमारे आँगन को,
चीड़ के पत्तों से पटे रास्ते
ताकते होंगे हमारी राह को,
प्रभात किरणें आतुर होंगी
हमारा माथा चूमने को,
देवदार की छाव फैली होगी
हमें बाहों में कसने को,
वहां
नीले अम्बर की चादर ओढ़े
हरे बुग्याल के सीने से लगकर
हम लेट लेंगे,
नदियों के बहाव से उत्पन्न
संगीत को सुनेंगे,
और संध्याकाल में
चोटी से उतरते सूर्यास्त को
छितिज पर बैठकर विदा देंगे ।
- शालिनी पाण्डेय
किसी रोज मैं
घण्टों पियानो
के पास बैठ कर
संगीत बुनने का
प्रयास करती हूं,
सिर्फ इसलिए कि
मुश्किल छणों में
इसकी धुन से
तुम्हारे मन को
गुंजायमान कर सकूँ ।
- शालिनी पाण्डेय
हेलो, अक्टूबर की सुबह
मैं आज बिछड़ रही हूं
इन दीवारों से
जिन्होंने मुझे सहेजे रखा था
मार्च की अंधेरी रातों में
आज मैं बिछड़ रही हूं
उस एकांत की स्याही से
जिसके रंगों में सरोबार होकर
मैंने क़लम चलाना सीखा
आज मैं बिछड़ रही हूं
उस दरवाजे से
जिससे होकर पहली बार
तुम मेरे करीब आये और
अधरों से अधर मिलाये
आज मैं बिछड़ रही हूं
उस शिवालय से
जिसकी घंटियों ने
निराशा में मुझे
जीवन की सरगम सुनाई
आज मैं बिछड़ रही हूं
उस अनुभूती के इंजन से
जो पिछले तीन वर्षों से
मुझे ले जा रहा था
एकाकीपन की पटरियों पर।
- शालिनी पाण्डेय
बेकारी, लाचारी और अकर्मठता
कितने खतरनाक गुण है
अगर एक साथ किसी के
हिस्से आ जाये तो
पतन के भूकंप का केंद्र
जल्दी ही उसको गले लगाएगा।
- शालिनी पाण्डेय
लो आ गयी,
तुम्हारी याद को
चाय में घोलती,
बरसात की ये शाम....
जो गाते हुए
बौछारों का संगीत,
मेरी खिड़की के बाहर,
धीमे-धीमे गुजरती है...
और अंधेरे होने तक,
गड़ाए रखती है,
मेरी आंखों को,
उस राह की ओर...
जिसपे एक रोज
तुम मिलने आये थे....
~ शालिनी पाण्डेय
नन्ही नन्ही
बारिश की बूदें,
आ बैठती है
फूलों की
कोमल पंखुड़ियों पर
और चमक उठती है
मेरी आंख में
मोतियों सी।।
-शालिनी पाण्डेय
तुम जब मुझमें उतर आते हो,
आंखों को नम कर जाते हो...
खाली पड़े घर के कोनों पर,
अपने हँसी बिखेर जाते हो...
डायरी के कोरे पन्नों पर,
कहानी सी लिख जाते हो...
रुक सी गयी समय की सुइयों पर,
बेल जैसे फैल जाते हो...
कोरे बदन के कैनवास पर,
प्यार को उकेर जाते हो...
तुम जब मुझमें उतर आते हो,
रूह को संतृप्त कर जाते हो...
- शालिनी पाण्डेय
जब रात का अंधेरा हटेगा
तेरा चेहरा साफ दिखेगा
शिकन की सब रेखाएं
माथे पर इकठ्ठी हो आएगी
काले बालों के बीच फंसे
सफेद रेशम चमक उठेंगे
हथेलियों पर छपे
संघर्ष के निशान उभर आएंगे
सीने में दफ़्न दुःखों
के तालाब फूट निकलेंगे
होठों में कसी मुस्कुराहट
चेहरे पर उतर आएगी
पलकों से ढका स्नेह
आँखों में तैर जाएगा
जब रात का अंधेरा हटेगा
तेरा चेहरा साफ दिखेगा।
- शालिनी पाण्डेय
फ़कीरी का जीवन है
अनुभवों से भरा हुआ
और अमीरी का
अनुभवहीनता से भरा हुआ।
फ़कीरी का प्यार है
भक्ति से उपजा हुआ
और अमीरी का
लोभ से उपजा हुआ
फ़कीरी की दोस्ती
बनी है मासूमियत से
और अमीरी की
बनी है जरूरत से
इसीलिए
फ़कीरी का घर बना है
संतोष और करुणा से
और अमीरी का
असंतोष और निष्ठुरता से
- शालिनी पाण्डेय
खाली रातों में
सन्नाटे के बीच
अंधेरे से घिरी
एक देह करवटे
बदल रही है
उसकी आंखों की
नींद गायब है
और दिल के दरवाजे पर
किसी दस्तक की इंतजारी है
- शालिनी पाण्डेय
बहुत भारी हो गए
अब उठाये नहीं जाते
ना ही बहाये जा सकते है
आसूँ तेरी इंतजारी के।
- शालिनी पाण्डेय
अगर हम सजीव है तो
भावुक हो जाना
एक स्वाभाविक घटना है
वैसे ही जैसे कि
उत्साहित हो जाना,
बशर्ते सभ्यता के ढोंग ने
हमें पूर्णतः अस्वभाविक
ना बना दिया हो।
- शालिनी पाण्डेय
प्रेरणा का स्रोत है गुरु
आशा की लौ है गुरु
सृजनात्मकता का नींव है गुरु
विश्वास की उड़ान सिखाता है गुरु
हिम्मत का पाठ पढ़ाता है गुरु
अतः नमन का सदैव हकदार है गुरु
~ शालिनी पाण्डेय
पानी के झरने
जब तुम ऊँचाई से गिरते हो
तो बूंदों का
एक धुआँ सा उड़ता है
जिसमें उभर कर आती है
ढेर सारी तस्वीरें
उनमें से एक तस्वीर है मृत्यु की
जो मुझे साफ नजर आती है,
तस्वीर की गहराई में
उतरते हुए
अहसास होता है कि
जीवन है एक छणिक लहर
मृत्यु ही है एकमात्र परम सत्य
जिसमें सभी लहरों को बह जाना है।
~ शालिनी पाण्डेय
टूटी शाखों पर
जब नई कोपलें निकल आती हैं
निर्बाध बहते झरने से
जब राही अपनी प्यास बुझाता है
जंगल के बीच वृक्ष की छांव में
जब थका हुआ चरवाहा सुस्ताता है
नदी की छोटी धार पर
जब कोई पत्थर का पुल बनाता है
वीरान त्याग दी गई राहों में
जब कोई अपना लौट आता है
विशाल बरगद की लटों से
जब कोई बच्चा झूला बनाता है
पत्थर के चूल्हे पर
जब कोई गीली लकड़ियां सुलगाता है
और बूढ़े देवालय में शाम को
जब कोई प्रकाश की लौ जलाता है
तो उजड़ा हुआ सा एक पहाड़
फिर से बस जाता है।
~ शालिनी पाण्डेय
वो बेबाक बातों सी
कल्पना वाली दुनिया
जब कम थे पैसे
ज्यादा थी खुशियां
मासूमियत लिए
दिल होते थे जब पाक
वादों के बिना भी
बन जाता था विश्वास
नन्ही सी अपनी दुनिया
लगती थी तब काफी
क्योंकि तब पास होते थे
बचपन के सच्चे साथी
~ शालिनी पाण्डेय
हर रात को
राख की तरह
पूरी जल कर
सो जाती हूँ
सुबह उस राख
के बीचों बीच
एक अंकुर निकलता है
आने वाले दिन के लिए
जो रात तक
फिर से जल कर
राख हो जाता है।
~ शालिनी पाण्डेय
क्यों ना
नीरस उदासी वाले पन्नों को
उखाड़ फेंकने के बजाय
एक छन्नी की तरह
जीवन में लगाया जाये
ताकि कुछ एक लोग
थोड़ा और करीब आ पाये,
और कुछ थोड़ा दूर चले जाये।
~ शालिनी पाण्डेय
बहुत डरावना है
महसूस कर पाना
साँसों की अधीरता
बहुत डरावना है
महसूस कर पाना
जीवन की भंगुरता
बहुत डरावना है
महसूस कर पाना
जीने की विवशता।
~ शालिनी पाण्डेय
अभी कुछ दिन पहले की बात है
जब समेटा था यार के विश्वास को
तो खो दिया था स्वार्थ को
जब समेट रही थी प्रार्थना की ऊर्जा को
तो खो रही थी काले डर की छाया को
जब बोने जा रही थी प्यार के बीजों को
तो उखाड़ रही थी अहं की जड़ों को
ऐसे ही रोज थोड़ा समेटती हूँ खुद को
और बिखेर देती हूं थोड़े को।
~ शालिनी पाण्डेय
धूल को देखा है कभी
कैसे वो चुपचाप आकर
बैठ जाती है अलमारी
में रखी किताबों के ऊपर
जो कई दिनों से नहीं पढ़ी गई
और हमें जरा भी
भनक नहीं लगती
धूल के किताब में आ जाने की
कई दिनों बाद जब
पढ़ने के लिए हम
उस किताब को टटोलते है
तो नजरों के लिए
मुश्किल सा होता है
धूल की परत को हटाए बिना
किताब को पहचान पाना
देखा कितनी चालाकी से
धूल किताब का हिस्सा
बनने की फिराक में थी,
इस धूल की तरह ही
कुछ विचार भी होते है
जो दबे पांव आकर
कुछ रोज के लिए
घेर लेते है हमारे मन को
अनजाने, गहरे अवसाद से।
~ शालिनी पाण्डेय
टूट टूट कर नींद तेरी यादों से
बिस्तर भरती रही रात भर
धड़कन तेरा नाम
गुनगुनाती रही रात भर
लब एक बोसे को
तड़पते रहे रात भर
बदन तेरे आगोश के
लिए सिमटता रहा रात भर
और साँसे बिछड़न का दर्द
सुनाती रही रात भर।
~ शालिनी पाण्डेय
तेज हवा सा तू टकराता है
बारिश की बूंद बन छू जाता है
सोये नन्हें बीजों को जगाकर
अंकुरित हो पेड़ बन आता है ।
~ शालिनी पाण्डेय
मैं चाहती हूं
कि तेरी डायरी हो जाऊं
जिसपे तू अनकही बातें लिख पाए
मैं चाहती हूं कि
चाय का प्याला हो जाऊं
जिसे हर रोज तू अपने लबों से लगाए
मैं चाहती हूं कि
तेरे बिस्तर की चादर हो जाऊं
जिस पर हर शाम तू अपनी थकन मिटाए
मैं चाहती हूं कि
एक सपना बन जाऊं
जिसमें तू मेरे सीने से लग पाए
मैं चाहती हूं कि
प्रेम की कविता हो जाऊं
जिसमें तेरी रूह अंततः मिल जाए।
~ शालिनी पाण्डेय
जब तू नहीं था
तो जीवन रूखा था
ना कविताएँ थी
ना गीत थे
ना सावन था
ना रंग थे
तेरे होने ने मुझे
रूखे जीवन की छाती में
बीज उगाने का हौसला दिया
तेरे होने ने मुझे
कविताओं के अर्थ दिये
गीतों को भाव दिए
तेरे होने ने मुझे
जिस्म के भीतर की
रूह से मिलवाया
तेरे होने ने मुझे
प्यार का अहसास दिया
जीवन की प्रेरणा दी
तेरे होने ने मुझे
सतही परतों को उखाड़ कर
गहराई में उतरने दिया
तेरे होने ने मुझे
अहसास दिया मेरे होने का
मुझमें ही खुदा के होने का ।
~ शालिनी पाण्डेय
जीवन का ये पन्ना जितना कोरा है
उतने ही रंग भी लिए हुए है
एक ओर विरह की खाई
दूजी ओर मिलन का शिखर लिए हुए है
प्रियतम के मिलने की खुशी के साथ
खुद की बेनकाबी का डर भी लिए हुए है
प्यार जीवन का वो पन्ना है
जो खूबसूरत और खतरनाक साथ में है ।
~ शालिनी पाण्डेय
देखो आज सारा दिन
टप-टप करती
संगीत बजाती हुई
बारिश गिरती रही
और साथ में
तुम्हारी यादों को
घोल - घोल
मेरे आँगन में
जमा करती रही ।
~ शालिनी पाण्डेय
क्या तूने सोचा कभी
कि ये तेरी और मेरी बातें
कभी ख़त्म क्यों नहीं होती ?
मुझे लगता है
कि ये बातें
भर रही होती है
हमारे बीच की दूरियों को
लफ़्ज़ों से
और
बना रही होती है
एक पुल
फासलों को बांधकर
ताकि दूर होने पर भी
हम जुड़ा हुआ महसूस करें।
~ शालिनी पाण्डेय
जब अंदाज़ा ना था
करीबियों का
तो ये दूरियां भी
खलती ना थी
लेकिन उस रोज से
जब तू गले लगाकर
बोसा देकर चला गया
तो ये दूरियां खलने लगी।
~ शालिनी पाण्डेय
कभी मकान जोड़ते
कभी दुकान जोड़ते
कभी दहेज जोड़ते हुए,
अनेक पिताओं की
उम्र यूँ ही बीत जाती है
मेहनत में शरीर तोड़ते हुए।
~ शालिनी पाण्डेय
हाँ, हाँ मुझे अब
कोई डर नही हैं
तुम्हें खोने का,
खोया उसे जाता है
जो हमसे पृथक हो,
पर तुम तो
मेरे भीतर की चेतन
साँसों जैसे हो,
तुम्हें तो उसी दिन
खोना होगा जब
मैं खुद को ही खो दूंगी।
~ शालिनी पाण्डेय
अगर केवल यथार्थ में जीना ही
जीने का सर्वोत्तम तरीका होता तो
क्यूँ मौत के करीब आता हर व्यक्ति
जीना चाहता है बचपन के किस्सों में
आखिर बचपन तो जीवन का
सबसे यथार्थवादी पड़ाव नहीं !!
~ शालिनी पाण्डेय
निश्चय ही तुम टकराना चट्टानों से
और काट लेना उन्हें अपने वेग से।
बहा ले जाना इस वेग में अवसादों को
और धीमे होकर किसी मोड़ पर छोड़ जाना।
जो कोई भी साथ चले
लिए उसे तुम, बढ़ते जाना, बढ़ते जाना।
जीवन, तुम भी धारा जैसे
अविरत बहते जाना, बहते जाना।।
~ शालिनी पाण्डेय
रेल के प्लेटफॉर्म पर
जहाँ यात्रियों को लिए
ट्रेन कुछ देर रुकती है
इस प्लेटफॉर्म पर
बहुत शोर होता है
यात्रियों की बातों का शोर
विक्रेता के चिल्लाने का शोर
ट्रैन के हॉर्न का शोर
लेकिन फिर भी
इस शोर से अनभिज्ञ
कुछ बच्चें सो जाते है
बिना शिकायत किये
प्लेटफ़ॉर्म की खाली जगह पर
बिना रुई वाले गद्दे के ही।
~ शालिनी पाण्डेय
लंबे इंतजार के बाद आना,
वो आना चाहे बरसात का हो
या महबूब का
बहुत ही सुखदाई होता है ।
~ शालिनी पाण्डेय
प्यार जब छू लेगा तुम्हारे अन्तर्मन को
तो वो पवित्र कर देगा हर एक कोने को
तब मन ही बन जायेगा मंदिर
फिर ना गंगाजल लाने हरिद्वार जाना होगा
ना ही ईश्वर दर्शन को देवालय में ।
~ शालिनी पाण्डेय
प्यार की एक झलक को
महसूस कर पाना
प्यार बनकर तुम्हारा
मेरे जीवन में आना
मेरे जीवन की अब तक की
सबसे गहन अनुभूति है।
~ शालिनी पाण्डेय
मालूम है मुझे कि
फिक्र तुम्हें भी रहती है
मेरे हाल की
बस तुम्हें जताना नही आता।
~ शालिनी पाण्डेय
I sometime want
to be perfect
in this imperfect life.
I sometime want
to be complete
in this incomplete life.
I sometime want
to be immortal
in this mortal life.
See it's all I have
a series of
Irony of dreams for life.
-~ Shalini Pandey
तुम चले जाओ
जहां भी तुम जाना चाहो
मैं नहीं रोकूँगी तुम्हें।
सोचती हूँ तुम्हें रोक कर भी क्या करूँगी,
और जब मैं खुद ही रुकना नहीं चाहती
तो तुम्हें किस हक़ से रोक लूँ ?
~ शालिनी पाण्डेय
कई बार यूँ भी हुआ
कि उम्र बीत जाती है
यहाँ इंसान की
क्षणिक भंगुर जीवन को
जी पाने के प्रयास में।
~ शालिनी पाण्डेय
जब मैं नहीं रहूंगी
तब भी तुम रहोगे सदा
मेरी कविता के अल्फ़ाज़ों में
मेरी कविता के जज्बातों में।
~ शालिनी पाण्डेय
भोर के वक़्त तुम्हारी याद
रहती है मेरी अधखुली आँखों में
जो तलाशती है तुझे मुझमें ही कहीं।
~ शालिनी पाण्डेय
फटे-पुराने लिबास को बदल लेने पर
अक़्सर इंसान को ग़लतफ़हमी हो जाती है,
कि भद्दा सा दिखने वाला अतीत का पन्ना
अब उसके जीवन में नहीं रहेगा ।
~ शालिनी पाण्डेय
नौकरी देखो तो
तुम्हारा कद
कितना बड़ा हो गया है,
तुम्हारी ख़ातिर हमने
बिना आँसू बहाये
अपनी नदियों, पहाड़ों और
घरों से पलायन कर लिया ।
~ शालिनी पाण्डेय
बातें भी कितनी अजीब होती हैं
कभी ना होते हुए भी बन जाती हैं
और कभी होते हुए भी नहीं समझी जाती हैं।
~ शालिनी पाण्डेय
आजकल हर किसी को
दूसरों से शिकायत है
कि कोई उन्हें नहीं समझता
उन्हें कोई ये बताये कि
मुश्किल होता है
सिर्फ चेहरा देख कर
शख़्सियत का अंदाजा लगाना
समझने और समझाने के लिए
चेहरे की परतों को पार कर
अंतरतम की गहराई में जाकर
व्यक्ति के ईमान को ढूढ़ना होता है ।
- शालिनी पाण्डेय
गौरैया जैसे हम भी बुनेंगे
अपना आशियाँ एक रोज़
किसी पहाड़ी पर
देवदार के ऊंचे पेड़ पर
बादलों के बीच
और बातें किया करेंगे
आसमा से ज़मी पे रहकर।
~ शालिनी पाण्डेय
जब मैं चल रही होती हूं सड़क पर
हवा को काटते हुए
मुझे लगता है जैसे मैं तुम्हारी ओर
ही आ रही हूं दूरियों को मिटाते हुए।
~ शालिनी पाण्डेय
बिखरे से इस जीवन में
प्यार मुझे समेटे हुए है
मेरे जिस्म के भीतर
मेरी रूह के अंदर।
- शालिनी पाण्डेय
तुम्हारे पर्वत हो जाने पर
मेरा घाटी हो जाना स्वाभाविक है,
क्योंकि तुम्हें ऊंचा उठाने के लिए
मेरा गहरा जाना भी तो जरूरी है।
- शालिनी पाण्डेय
जीवन की धूप में जलकर
मन उजाड़ सा हो गया है
हे पर्वत, तुम मुझे
अपनी छांव में ले लो
और मेरे अंतर्मन को
पुनः हरा कर दो।
- शालिनी पाण्डेय
वक़्त की चाल
कुछ टेड़ी सी होती है,
जैसे ही कदम मिलाने
की कोशिश करो,
ये तुम्हें उलझाकर
फ़िर आगे निकल जाती है।
- शालिनी पाण्डेय
माना धूप जैसे मैं कभी
उड़ा ले जाती हूँ तुम्हारे रंगों को
लेक़िन
फ़िर मैं आती भी तो हूँ बसंत बन
उन रंगों को नया कर तुम्हें लौटाने।
~ शालिनी पाण्डेय
हिमालय की घाटी
तुम माँ जैसे
फिर मुझे
अपने गर्भ में रख लो
और नौ माह बाद
अपनी तलहटी में ही
किसी नदी के रूप में
पुनर्जन्म दे दो ।
- शालिनी पाण्डेय
लेखन कर्म के लिए
शब्द बहुत जरूरी हैं
लेकिन जो सबसे जरूरी है
वो है संवेदना
जो लेखक को
शब्द चुनने और बुनने की
कला से परिचित कराती है।
- शालिनी पाण्डेय
जब तेरे और मेरे
बीच में मोहब्बत है तो
फ़िर ये शर्म और पर्दा
हमारे बीच कैसे?
- शालिनी पाण्डेय
ऐ लड़की,
तुम अपने लिए
कोई ख़्वाब
क्यूं नहीं देखती ,
क्या सारी सांसें तुम
हिम्मत जुटाने में ही
जला दोगी?
- शालिनी पाण्डेय
कई बार
जब मैं खुद को
अलग पाती हूँ
अन्य लड़कियों से
भौतिक नहीं
वैचारिक, बौद्धिक
और कल्पना के स्तर पर
तो मुझे ये
अहसास कराया जाता है कि
अलग राह चुनना
यूँ तो सही है,
...
पर............
सुरक्षा ???????
वो कैसे पाओगी इस राह पर?
क्योंकि आखिर
हो तो तुम लड़की ही।
- शालिनी पाण्डेय
मैं नहीं चाहती,
बहुत बड़ा संसार अपने लिए,
मैं चाहती हूं,
बहुत सारी संवेदनाएं अपने लिए,
और हो सके तो
एक हमराही,
इन्हें सांझा करने के लिए।
- शालिनी पाण्डेय
यहाँ हमारे आस पास
बहुत कम लोग है
जो कविता की
भाषा समझते है
और जो कविता के
मर्म को जान पाते है,
क्योंकि ज़्यादातर तो
स्थूल आवश्यकता
की पूर्ति में
अपनी जान उलझाकर
जो जानने योग्य है
उससे वंचित हो जाते है।
- शालिनी पाण्डेय
लिखना एक प्रयास है
अंतर्मन की बेचैनियों को
शक़्ल देकर दूसरों से रूबरू
कराने का
लिखना एक लत है
सिगरेट जैसे
जिसके धुएं से तुम मदहोश हो
ना चाहते हुए भी
लिखना एक रिश्ता है
मोहब्बत की तरह
जो बनता चला जाता है
बिना किसी इजाज़त के
लिखना मानो एक घटना है
जिसमें बीत रहा होता है
लेख़क का वर्तमान
स्याही में डूबते-तैरते हुए।
- शालिनी पाण्डेय
कुछ अल्फ़ाज़
पुल जैसे होते हैं
जो दो मूक संवेदनाओं को
जोड़ने का काम करते हैं ।।
- शालिनी पाण्डेय
हाँ हाँ
मुझे डर नहीं है अब
तुमको खोने का,
खोया उसे जाता है
जो हमसे पृथक हो,
पर तुम तो
मेरे भीतर की चेतन
साँसों जैसे हो,
तुम्हें तो उसी दिन
खोना होगा जब
मैं खुद को ही खो दूंगी।
-शालिनी पाण्डेय
क्या तुम लौटा पाओगे मुझे
वो सावन जो तुम्हारे इंतज़ार में
बिना बरसे ही लौट गया
क्या तुम लौटा पाओगे मुझे
वो सवेरा जोे दीदार की चाह
में कभी हो नहीं पाया
क्या तुम लौटा पाओगे मुझे
वो इंतज़ार जो बेवज़ह
मेरी आँखों में घिर आया
क्या तुम लौटा पाओगे मुझे
वो दरिया जो तुम्हारे प्यार में
झील सा रुक गया
क्या तुम लौटा पाओगे मुझे
वो सब कुछ जो कभी मेरा था
पर अब तुम्हारा हो गया ।
- शालिनी पाण्डेय
मानो एक ही रेखा के
दो छोर से है
स्त्री और पुरुष
जो कि
अपने अड़ियल पन में
विपरीत दिशाएँ अपनाकर
फासले की खाईयों को जन्म देते है
और
अपने लचीले स्वभाव में
अनुकूल दिशाएँ अपनाकर
एक दूसरे को सम्पूर्ण करते है।
- शालिनी पाण्डेय
धुंधला सा चांद
आया है आज
मेरी खिड़की पर,
इसका चेहरा
ठीक वैसा ही
दिखता है
जैसे तुम्हारा
चेहरा था
उस रोज
जब तुम
पहली बार
मिलने आये थे
बीमारी का
पीलापन लिए।
- शालिनी पाण्डेय
तुम जब जागोगे
तो शायद
मैं तुम्हारे शहर से दूर
निकल आयी होंगी
तुम अधखुली आंखों के
ख़्वाब में मुझे देखना
और मैं यादों में रखी
तुम्हारी सूरत निहार लूंगी।
- शालिनी पाण्डेय
तुम्हें क्या कहूँ ?
दोस्त,
हमराही या
हमसफ़र...
सोचती हूं,
तुम्हें कुछ ना कहूँ,
सिर्फ कहने से ही
तो होना नहीं होता।
--शालिनी पाण्डेय
हर वाक़ये पर
कैसे तुम मुझे
अलग अलग
तराजुओं में
तोल देते हो
आज मैं तुमसे
विनती करती हूं
बाहर की सूचनाओं
को आधार बना
मुझे तोलना बंद करो
जब तुमने कभी मेरे
भीतर की चेतना की ओर
झांका ही नहीं और
सृजन के कारक को
पहचाना ही नहीं
तो तुम कैसे मेरी
तुलना कर सकते हो?
-- शालिनी पाण्डेय
कुछ यादें
कोयले जैसी होती हैं
जो वक़्त के दबाव को सहकर
हीरे में तब्दील हो जाती हैं।
- शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...