Monday 30 December 2019

चले आते हो

जब
अहसास लोटते है,
शब्द झूलते है,
बूंदे बरसती है,
चित्र बिखरते है,

तुम
शांत चित्त ,
करुणाशील आँखे,
गंभीर स्वभाव,
विशाल हृदय हो,

आँखें मूँदते ही
चले आते हो।

- शालिनी पाण्डेय 

Wednesday 25 December 2019

तुम हो

तुम हो कुछ हासिल, कुछ बेहासिल से
तुम हो थोड़े जिद्दी, थोड़े पागल से

तुम हो थोड़े गम, थोड़ी खुशी जैसे
तुम हो थोड़े रास्ते, थोड़े मंजिल जैसे

तुम हो थोड़े पास, थोड़े दूर जैसे
तुम हो थोड़े मिले, थोड़े खोये जैसे

तुम हो थोड़े धूप, थोड़े बारिश जैसे
तुम हो थोड़े तुम जैसे, थोड़े मुझ जैसे।

~ शालिनी पाण्डेय

खामखा


कभी कभी
जिंदगी उलझ जाती है
बालों की तरह
और मैं 
मेरे उलझे बालों की तरह 
इसे भी रहने देती हूं अनसुलझी ।
अब जब इसे 
उलझने का इतना ही शौक है तो 
क्यूं खामखा इसे सुलझाना??

- शालिनी

मिठास


तुम पास रहो तो मिठास लगती है
तुम्हारे बिना जिंदगी उदास लगती है...
ये माना कि मसले और भी होंगे 
जिनमें तुम मसगूल रहते होगे,
पूनम के चाँद जैसे ही मिल लो कभी
कबसे आँखें तुम्हारा इंतजार करती है...

- शालिनी पाण्डेय 

Monday 23 December 2019

धर्म भक्तों

बिगड़ती अर्थव्यवस्था में
जब नहीं मिलेगा रोजगार,
दिन में कमाने वाले मजदूर 
शाम को खाली हाथ ही लौट जाएंगे,
जब नहींं जल पायेगा रात को
किसी गरीब के घर चूल्हा,

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से
जब पिघल जाएंगे ग्लेशियर,
प्रदूषण बढ़ते-बढ़ते जब
नहीं बचेगी साफ आबोहवा,
ना होगा पीने का पानी,
बंजर हो रहे होंगे खेत-खलिहान,
जब धरती पर नहींं रहेगा  
इंसानियत वाला धर्म.....

धर्म का मतलब समझे बिना ही
चौकस हो जाने वाले भक्तों,
तुम्ही बताओ, 
तब क्या;
तुम किसी भी धर्म की छतरी तले 
आने वाली संतानों को प्रलय से बचा पाओगे??

- शालिनी 

Sunday 22 December 2019

धसता सा इंसान

आधुनिक तकनीकियों से परिपूर्ण 
 कंक्रीट के बनाये इस जंगल में
झुलसते-झुलसते 
मन उलझता जाता है,
भीतर का इंसान, धंसता जाता है...

वहीं, एक पेड़ों से बना जंगल है
जिसकी छांह में 
कुछ देर सुस्ता लेने भर से,
कई उलझनें सुलझ जाती है
और भीतर का धंसता इंसान 
निकलता सा प्रतीत होता है....

- शालिनी 



Saturday 21 December 2019

तुम्हारी ओर

सर्दी की हर शाम,

पहाड़ी के उस ओर,
जिस तरफ तुम रहते हो,
जहाँ सूरज छिपता है...
मैं, इस ओर से
रोज देखती हूँ...
इसे, तुम्हारी ओर आते हुए,

पर, कभी आ ना सकी,
इसके साथ,
तुम्हारी ओर को।

-- शालिनी

Wednesday 18 December 2019

अच्छा लगता है

मुझे,
उसका हाथ थामकर , 
पहाड़ की चोटी 
पर चढ़ना अच्छा लगता है, 

जंगल की गोद से गुजरते हुए
संकरे रास्तों पर 
उलझना अच्छा लगता है,

गिरने पर ,
उसकी हथेली पकड़ कर
सम्भलना अच्छा लगता है,

किसी पत्थर पर बैठ 
गुनगुनी धूप सेंकते हुए
सुस्ताना अच्छा लगता है,

देर तक यूं ही 
बेवजह उसकी तरफ 
देखे रहना अच्छा लगता है,

उसका नाम पुकारने पर,
पहाड़ से गूंज कर,
लौटने वाली आवाज़ को
सुनते रहना, अच्छा लगता है. 

- शालिनी

Friday 6 December 2019

पहाड़ बुलाता है

पहाड़ बुलाता है,
हर गुजरते हुए,
आदमी को,
फैलाता है,
अपनी गोद,
बिछा देता है,
अपना आंचल...

देखो,
पहाड़ पालता है,
अपने गर्भ में,
ऊंचे देवदार को,
उफनते नदी-नालों को, 
और
अपनी ओट में 
उगा लेता है काई..

तो, क्या?
हम और तुम,
नहीं पल पाते,
इसके आंचल तले???

- शालिनी पाण्डेय 

Saturday 23 November 2019

आगमन

आगमन, जीवन किरणों का..
प्रस्फुटन, नव पल्लवों का..
सृजन, नव कथाओं का..
उद्भव, श्वेत झरनों का..
विस्तार,  अंतर संवादों का..
आदान-प्रदान,भावनाओं का..
महकना, रजनीगंधा का..
सब परिणाम है, तुम्हारे प्रेम में होने का..

-  शालिनी पाण्डेय 

Monday 18 November 2019

सरु चलो ना

किराये के
मकान की
बालकनी से,
बाहर झांकते हुए,
एक दिन,
उसने पूछा -

सरु,
कौन सा संगीत,
सुनाई देता है,
तुम्हें यहां ?
कौन सा नजारा,
दिखता है,
किवाड़ों को 
खोलने पर ?

कंधे पर, 
थोड़ा सा
खुद को टिकाकर,
वो बोला-

देखो ये दीवार...
कितनी बड़ी है,
लेकिन...
एक भी 
दूब का तिनका 
नहीं उग पाता 
इस पर...
कितनी 
विषाक्तता है,
साँसों में,
भीतर इन 
कोरी दीवारों के.....

कुछ देर, 
वो मौन रहा....
और सांसे जुटाकर  
पुनः बोल उठा- 

सरु चलो ना,
लौट चलते है,
वहाँ को,
जहां से आरंभ हुए...
चलो ना,
लौट चलते है,
अपने पहाड़ की ओर....

-शालिनी पाण्डेय

हिमालय हूँ मैं

चीड़, ओक, देवदार की खुशबू लिए
कर रहा सुगंधित श्वासों को,
बुरांश, ब्रह्मकमल के फूल खिला
महका रहा घर-आंगन को,

मोनाल, ट्रैगोपान की चहक से
रोज सवेरे जगा रहा तुमको,
किलकारी भड़ल, हिम् तेंदुए की 
पाल रहा तुम्हारे आंचल में,

बन हिमाद्रियों का जन्मदाता 
कर रहा सुसज्जित केशों को,
पंच बद्री, पंचकेदार का रूप लिए
ध्यान और तप का स्थान हूं मैं,

पूनम के शशि सा तेज लिए,
सुशोभित तुम्हारे ललाट पर,
रहूंगा सतत ही मौन खड़ा,
तुम्हारी प्रहरी, हिमालय हूं मैं।

-शालिनी पाण्डेय 

Sunday 17 November 2019

बचपन

बचपन 
चाहे किसी का भी हो
अमीर का
या गरीब का,
वो ख़्वाब देखता है,

उसे 
अनगिनत ख़्वाब
देखने दो,

क्योंकि बचपन
बनाता है
एक सुदृढ़ नींव 
कल्पनों की,

बड़ा होने पर 
जिसपर
खड़ी होती है 
इमारत यथार्त की।

- शालिनी पाण्डेय 


पहाड़ को जाती सड़क

जंगल को 
दो हिस्सों में बांटती
ये सड़क
सीधी 
मेरे पहाड़ को जाती है,

जहां अब भी बसती है
गाड़, गधेरों, बाघ, बण,
कौतिक, ब्या, त्यार
के बारे में सुनाई
मेरी आमा की कहानियां,

जो जीवन पर्यंत 
उन्होंने बटोरी,
मेरे लिए
ताकि सैंंन में रहकर भी
मैं बनी रहूँ पहाड़ी,

और
उनके चले जाने के बाद भी
देख पाऊं उन्हें 
पहाड़ के किसी
डाणे में 
घास काटते हुए।

- शालिनी पाण्डेय 


For those who don't understand pahadi

गाड़: Small seasonal river stream
गधेरा: an abrupt or steep fall
बण: Forest
कौतिक: Fair
ब्या: Marriage
त्यार: Festival
आमा: Grandmother
सैंन: Plain area
डाणा: Low mountain

Saturday 16 November 2019

मां

अपनी संतानों द्वारा उपेक्षित किये जाने पर भी
स्वम् को प्रदत्त कर्तव्यों का निर्वहन माँ नहीं भूलती ।

- शालिनी पाण्डेय 

चुपके से

चुपके से
बिना पैरों के
निशान छोड़े,
रिश्तों की 
इस कोलाहल भरी
दुनिया से
कहीं दूर 
निकल जाने को
जी चाहता है। 

- शालिनी पाण्डेय

Friday 15 November 2019

झरना

थके हारे से दिनों में,
जब नहीं समझ आता,
कि 
प्राण क्यों जीवित हैंं ?

तब,
किनारा पाने की आस में,
उदासियां निचोड़ कर
लिखे रात्रिगीत को सुनाने 
मैं तुम्हारी ओर आती हूं,

लेकिन, 
दरवाज़े के ठीक सामने
ठिठक जाती है चाल,
मौन धारण कर लेते है शब्द.....

और 
गीत को 
अपने भीतर समेटकर,
मैं इस डर से 
लौट आती हूं कि....
कहीं मेरी कलम से निकला 
उदास स्याहियों का ये झरना
देहली लांघ कर, 
तुम्हारे भीतर ना बह निकले।

- शालिनी पाण्डेय

Thursday 14 November 2019

ताउम्र

ताउम्र 
सूरज बन कर मैं
तुम्हारे छितिज पर
उगता रहूंगा
और 
रोशन करता रहूंगा
अंधेरे से कुम्हला रहे
तुम्हारे हिस्सों को।।

- शालिनी पाण्डेय 

Wednesday 13 November 2019

राजा और रानी

हर दिन ये खेले
उल्लास भरे मेले,
मिट्टी का घर बना
जश्न मना लेते है,
कागज़ के पंख लगा 
उड़ लेते है, 

ये सुनते हुए कहानी
भूल जाते है परेशानी 
और
खुद ही बन जाया करते है
राजा और रानी।

बाल दिवस की शुभकामनाएं ।

- शालिनी पाण्डेय

Tuesday 12 November 2019

तुम्हारा श्रृंगार

मैं बहुत कुछ कहना चाहता हूं
कुछ अच्छा लिखना चाहता हूं
तुम्हारे साथ नदी के तीर बैठकर
एक नया सवेरा बुनना चाहता हूं।

पहाड़ की वादियों, झरनों, 
बादलों, पिरुल और बांज को 
एक माला सा पिरोकर
तुम्हारा श्रृंगार करना चाहता हूं।

हिम् आच्छादित शिखर में
चांद और सूरज को परोस
गंगा की लहरों को समेटकर 
तुम्हारा सिरमौर बनना चाहता हूं।

- शालिनी पाण्डेय

Monday 11 November 2019

जंगल के बनाये रास्ते

अनकही बातें,
अधपके सपने,
अधखुले चेहरे,
अनदेखे पड़ाव,
सब सच से मालूम पड़ते है
जंगल के बनाए 
इन रास्तों में चलते हुए।

 - शालिनी पाण्डेय

Monday 14 October 2019

सलीका

तेरे बदन की ओस से भीगी हुई साँसें,
जो रेत के कणों को जोड़कर, 
मेरी शक़्ल को मूर्त बनाती है....
नदी के छोर सी तेरी बाहें,
जो इच्छाओं को स्वछंद बहाती हुई,
मुझे बचाये रखती है बिफरने से.....
और हर वक़्त साथ चलता,
तेरी खुशबू से महकता ये आशियाँ,
जीवन को अहसास देता है कि
तू एक सलीका है,
जिंदगी जीने का.....

- शालिनी पाण्डेय

Sunday 13 October 2019

चलो ना मेरे साथ

तुम चलो ना मेरे साथ
किसी पहाड़ पर,
वहीं बसायेंगे संसार
प्यार और विश्वास का ।।

वहां
बर्फ की नदियां सींचती
होंगी हमारे आँगन को,
चीड़ के पत्तों से पटे रास्ते
ताकते होंगे हमारी राह को,
प्रभात किरणें आतुर होंगी
हमारा माथा चूमने को,
देवदार की छाव फैली होगी
हमें बाहों में कसने को,

वहां
नीले अम्बर की चादर ओढ़े
हरे बुग्याल के सीने से लगकर
हम लेट लेंगे,
नदियों के बहाव से उत्पन्न
संगीत को सुनेंगे,
और संध्याकाल में
चोटी से उतरते सूर्यास्त को
छितिज पर बैठकर विदा देंगे ।

- शालिनी पाण्डेय

Monday 7 October 2019

बुनना

किसी रोज मैं
घण्टों पियानो
के पास बैठ कर
संगीत बुनने का
प्रयास करती हूं,

सिर्फ इसलिए कि
मुश्किल छणों में
इसकी धुन से
तुम्हारे मन को
गुंजायमान कर सकूँ ।

- शालिनी पाण्डेय

Monday 30 September 2019

अक्टूबर की सुबह

हेलो, अक्टूबर की सुबह
मैं आज बिछड़ रही हूं
इन दीवारों से
जिन्होंने मुझे सहेजे रखा था
मार्च की अंधेरी रातों में

आज मैं बिछड़ रही हूं
उस एकांत की स्याही से
जिसके रंगों में सरोबार होकर
मैंने क़लम चलाना सीखा

आज मैं बिछड़ रही हूं
उस दरवाजे से
जिससे होकर पहली बार
तुम मेरे करीब आये और
अधरों से अधर मिलाये

आज मैं बिछड़ रही हूं
उस शिवालय से
जिसकी घंटियों ने
निराशा में मुझे
जीवन की सरगम सुनाई

आज मैं बिछड़ रही हूं
उस अनुभूती के इंजन से
जो पिछले तीन वर्षों से
मुझे ले जा रहा था
एकाकीपन की पटरियों पर।

- शालिनी पाण्डेय

पतन का भूकंप

बेकारी, लाचारी और अकर्मठता
कितने खतरनाक गुण है
अगर एक साथ किसी के
हिस्से आ जाये तो
पतन के भूकंप का केंद्र
जल्दी ही उसको गले लगाएगा।

- शालिनी पाण्डेय

बरसात की शाम

लो आ गयी, 
तुम्हारी याद को
चाय में घोलती,
बरसात की ये शाम....
जो गाते हुए
बौछारों का संगीत,
मेरी खिड़की के बाहर,
धीमे-धीमे गुजरती है...

और अंधेरे होने तक,
गड़ाए रखती है,
मेरी आंखों को,
उस राह की ओर...
जिसपे एक रोज
तुम मिलने आये थे....

~ शालिनी पाण्डेय

Saturday 28 September 2019

बारिश की बूंदें

नन्ही नन्ही
बारिश की बूदें,
आ बैठती है
फूलों की
कोमल पंखुड़ियों पर
और चमक उठती है
मेरी आंख में
मोतियों सी।।

-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 18 September 2019

तुम जब मुझमें उतर आते हो

तुम जब मुझमें उतर आते हो,
आंखों को नम कर जाते हो...

खाली पड़े घर के कोनों पर,
अपने हँसी बिखेर जाते हो...

डायरी के कोरे पन्नों पर,
कहानी सी लिख जाते हो...

रुक सी गयी समय की सुइयों पर,
बेल जैसे फैल जाते हो...

कोरे बदन के कैनवास पर,
प्यार को उकेर जाते हो...

तुम जब मुझमें उतर आते हो,
रूह को संतृप्त कर जाते हो...

- शालिनी पाण्डेय

Tuesday 17 September 2019

जब रात का अंधेरा हटेगा

जब रात का अंधेरा हटेगा
तेरा चेहरा साफ दिखेगा

शिकन की सब रेखाएं
माथे पर इकठ्ठी हो आएगी
काले बालों के बीच फंसे
सफेद रेशम चमक उठेंगे

हथेलियों पर छपे
संघर्ष के निशान उभर आएंगे
सीने में दफ़्न दुःखों
के तालाब फूट निकलेंगे

होठों में कसी मुस्कुराहट
चेहरे पर उतर आएगी
पलकों से ढका स्नेह
आँखों में तैर जाएगा

जब रात का अंधेरा हटेगा
तेरा चेहरा साफ दिखेगा।

- शालिनी पाण्डेय

Thursday 12 September 2019

फ़कीरी

फ़कीरी का जीवन है
अनुभवों से भरा हुआ
और अमीरी का
अनुभवहीनता से भरा हुआ।

फ़कीरी का प्यार है
भक्ति से उपजा हुआ
और अमीरी का
लोभ से उपजा हुआ

फ़कीरी की दोस्ती
बनी है मासूमियत से
और अमीरी की
बनी है जरूरत से

इसीलिए
फ़कीरी का घर बना है
संतोष और करुणा से
और अमीरी का
असंतोष और निष्ठुरता से

- शालिनी पाण्डेय

Tuesday 10 September 2019

खाली रातों में

खाली रातों में
सन्नाटे के बीच
अंधेरे से घिरी
एक देह करवटे
बदल रही है

उसकी आंखों की
नींद गायब है
और दिल के दरवाजे पर
किसी दस्तक की इंतजारी है

- शालिनी पाण्डेय

इंतजारी

बहुत भारी हो गए
अब उठाये नहीं जाते
ना ही बहाये जा सकते है
आसूँ तेरी इंतजारी के।

- शालिनी पाण्डेय

Monday 9 September 2019

Dreams

In order to flourish
Some dreams come along
the wave of life and
some are left out to die.

-Shalini Pandey

छू जाओ

कई बार मैं
एकांत में बैठे
घंटों तक तुम्हें एक टक
देखती रहती हूं
इस आस में कि
साँसों के रास्ते
भीतर आ कर तुम
मेरी रूह को
बस एक दफा छू जाओ।

-शालिनी पाण्डेय

Saturday 7 September 2019

भावुक हो जाना

अगर हम सजीव है तो
भावुक हो जाना
एक स्वाभाविक घटना है
वैसे ही जैसे कि
उत्साहित हो जाना,
बशर्ते सभ्यता के ढोंग ने
हमें पूर्णतः अस्वभाविक
ना बना दिया हो।

- शालिनी पाण्डेय

Thursday 5 September 2019

गुरु

प्रेरणा का स्रोत है गुरु
आशा की लौ है गुरु
सृजनात्मकता का नींव है गुरु
विश्वास की उड़ान सिखाता है गुरु
हिम्मत का पाठ पढ़ाता है गुरु
अतः नमन का सदैव हकदार है गुरु

~ शालिनी पाण्डेय

Monday 2 September 2019

पानी के झरने

पानी के झरने
जब तुम ऊँचाई से गिरते हो
तो बूंदों का
एक धुआँ सा उड़ता है
जिसमें उभर कर आती है
ढेर सारी तस्वीरें

उनमें से एक तस्वीर है मृत्यु की
जो मुझे साफ नजर आती है,
तस्वीर की गहराई में
उतरते हुए
अहसास होता है कि
जीवन है एक छणिक लहर
मृत्यु ही है एकमात्र परम सत्य
जिसमें सभी लहरों को बह जाना है।

~ शालिनी पाण्डेय

Monday 19 August 2019

उजड़ा सा पहाड़

टूटी शाखों पर
जब नई कोपलें निकल आती हैं

निर्बाध बहते झरने से
जब राही अपनी प्यास बुझाता है

जंगल के बीच वृक्ष की छांव में
जब थका हुआ चरवाहा सुस्ताता है

नदी की छोटी धार पर
जब कोई पत्थर का पुल बनाता है

वीरान त्याग दी गई राहों में
जब कोई अपना लौट आता है

विशाल बरगद की लटों से
जब कोई बच्चा झूला बनाता है

पत्थर के चूल्हे पर
जब कोई गीली लकड़ियां सुलगाता है

और बूढ़े देवालय में शाम को
जब कोई प्रकाश की लौ जलाता है

तो उजड़ा हुआ सा एक पहाड़
फिर से बस जाता है।

~ शालिनी पाण्डेय

Saturday 17 August 2019

बचपन के साथी

वो बेबाक बातों सी
कल्पना वाली दुनिया

जब कम थे पैसे
ज्यादा थी खुशियां

मासूमियत लिए
दिल होते थे जब पाक

वादों के बिना भी
बन जाता था विश्वास

नन्ही सी अपनी दुनिया
लगती थी तब काफी

क्योंकि तब पास होते थे
बचपन के सच्चे साथी

~ शालिनी पाण्डेय

Friday 2 August 2019

राख

हर रात को
राख की तरह
पूरी जल कर
सो जाती हूँ

सुबह उस राख
के बीचों बीच
एक अंकुर निकलता है
आने वाले दिन के लिए

जो रात तक
फिर से जल कर
राख हो जाता है।

~ शालिनी पाण्डेय

Wednesday 31 July 2019

क्यों ना

क्यों ना
नीरस उदासी वाले पन्नों को
उखाड़ फेंकने के बजाय
एक छन्नी की तरह
जीवन में लगाया जाये
ताकि कुछ एक लोग
थोड़ा और करीब आ पाये,
और कुछ थोड़ा दूर चले जाये।

~ शालिनी पाण्डेय

Sunday 28 July 2019

बहुत डरावना है

बहुत डरावना है
महसूस कर पाना
साँसों की अधीरता

बहुत डरावना है
महसूस कर पाना
जीवन की भंगुरता

बहुत डरावना है
महसूस कर पाना
जीने की विवशता।

~ शालिनी पाण्डेय

Saturday 27 July 2019

रोज थोड़ा

अभी कुछ दिन पहले की बात है
जब समेटा था यार के विश्वास को
तो खो दिया था स्वार्थ को

जब समेट रही थी प्रार्थना की ऊर्जा को
तो खो रही थी काले डर की छाया को

जब बोने जा रही थी प्यार के बीजों को
तो उखाड़ रही थी अहं की जड़ों को

ऐसे ही रोज थोड़ा समेटती हूँ खुद को
और बिखेर देती हूं थोड़े को।

~ शालिनी पाण्डेय

Thursday 25 July 2019

अनजाने अवसाद से

धूल को देखा है कभी
कैसे वो चुपचाप आकर
बैठ जाती है अलमारी
में रखी किताबों के ऊपर
जो कई दिनों से नहीं पढ़ी गई
और हमें जरा भी
भनक नहीं लगती
धूल के किताब में आ जाने की

कई दिनों बाद जब
पढ़ने के लिए हम
उस किताब को टटोलते है
तो नजरों के लिए
मुश्किल सा होता है
धूल की परत को हटाए बिना
किताब को पहचान पाना

देखा कितनी चालाकी से
धूल किताब का हिस्सा
बनने की फिराक में थी,

इस धूल की तरह ही 
कुछ विचार भी होते है
जो दबे पांव आकर
कुछ रोज के लिए
घेर लेते है हमारे मन को
अनजाने, गहरे अवसाद से।

~ शालिनी पाण्डेय

Monday 15 July 2019

देखो

तुमने विरह का संगीत सुना है
अब मिलन का जश्न भी देखो
तुमने मुझे अनाशक्त देखा है
लो अब अब आशक्त भी देखो।

~ शालिनी पाण्डेय

जन्म

विरह जब तक तक था
तो कविताएँ जन्म लेती थी
अब मिलन आया है तो
आकांक्षाएं जन्म ले रही है।

~ शालिनी पाण्डेय

Thursday 11 July 2019

रात भर

टूट टूट कर नींद तेरी यादों से
बिस्तर भरती रही रात भर

धड़कन तेरा नाम
गुनगुनाती रही रात भर

लब एक बोसे को
तड़पते रहे रात भर

बदन तेरे आगोश के
लिए सिमटता रहा रात भर

और साँसे बिछड़न का दर्द
सुनाती रही रात भर।

~ शालिनी पाण्डेय

तेज हवा

तेज हवा सा तू टकराता है
बारिश की बूंद बन छू जाता है
सोये नन्हें बीजों को जगाकर
अंकुरित हो पेड़ बन आता है ।

~ शालिनी पाण्डेय

Sunday 23 June 2019

अंधेरे में

अंधेरे में ख़्वाब बुनती हूं,
विरह का संगीत सुनती हूं,
यादों के टुकड़े परोसती हूं,
दर्द के पलों को चुनती हूँ,
अपनी रूह को बिछाती हूं
तेरे अहसास को ओढ़ती हूं,
तुझसे जुदा होने पर मैं
ऐसे ही तुझे साकारती हूं।
~ शालिनी पाण्डेय

तब और आज

हम छोड़ आये
निर्बाध बहती नदियां
आकाश चूमते पहाड़
हरे भरे चीड़ और देवदार

कर आये पलायन
आँगन में बहती ठंडी बयार से,
लकड़ी और पत्थर के घरों से ,
छत पर टहलते सफेद बादलों से,
जमीन के गर्भ से निकले धारों से,
मडुवे और कौणी वाले अनाज से,
हिसालू, किलमोडा, काफल से,

और 
अब हम रहते है
ईट के तपते भट्टों के भीतर
ज़हरीले धुएं के बीच
पीते है बिसलरी का पानी
खाते है डोमिनोज़ का पिज़्ज़ा
और बातें करते है पेड़ लगाने की,
पर्यावरण को बचाने की।
~ शालिनी पाण्डेय

Saturday 22 June 2019

मैं चाहती हूं

मैं चाहती हूं
कि तेरी डायरी हो जाऊं
जिसपे तू अनकही बातें लिख पाए

मैं चाहती हूं कि
चाय का प्याला हो जाऊं
जिसे हर रोज तू अपने लबों से लगाए

मैं चाहती हूं कि
तेरे बिस्तर की चादर हो जाऊं
जिस पर हर शाम तू अपनी थकन मिटाए

मैं चाहती हूं कि
एक सपना बन जाऊं
जिसमें तू मेरे सीने से लग पाए

मैं चाहती हूं कि
प्रेम की कविता हो जाऊं
जिसमें तेरी रूह अंततः मिल जाए।

~ शालिनी पाण्डेय

Friday 21 June 2019

तेरे होने ने

जब तू नहीं था
तो जीवन रूखा था
ना कविताएँ थी
ना गीत थे
ना सावन था
ना रंग थे

तेरे होने ने मुझे
रूखे जीवन की छाती में
बीज उगाने का हौसला दिया

तेरे होने ने मुझे
कविताओं के अर्थ दिये
गीतों को भाव दिए

तेरे होने ने मुझे
जिस्म के भीतर की
रूह से मिलवाया

तेरे होने ने मुझे
प्यार का अहसास दिया
जीवन की प्रेरणा दी

तेरे होने ने मुझे
सतही परतों को उखाड़ कर
गहराई में उतरने दिया

तेरे होने ने मुझे
अहसास दिया मेरे होने का
मुझमें ही खुदा के होने का ।

~ शालिनी पाण्डेय

Thursday 20 June 2019

प्यार का पन्ना

जीवन का ये पन्ना जितना कोरा है
उतने ही रंग भी लिए हुए है

एक ओर विरह की खाई
दूजी ओर मिलन का शिखर लिए हुए है

प्रियतम के मिलने की खुशी के साथ
खुद की बेनकाबी का डर भी लिए हुए है

प्यार जीवन का वो पन्ना है
जो खूबसूरत और खतरनाक साथ में है ।

~ शालिनी पाण्डेय

Tuesday 18 June 2019

बारिश

देखो आज सारा दिन
टप-टप करती
संगीत बजाती हुई
बारिश गिरती रही
और साथ में
तुम्हारी यादों को
घोल - घोल
मेरे आँगन में
जमा करती रही ।

~ शालिनी पाण्डेय

Sunday 16 June 2019

जुड़ा हुआ

क्या तूने सोचा कभी
कि ये तेरी और मेरी बातें
कभी ख़त्म क्यों नहीं होती ?

मुझे लगता है
कि ये बातें
भर रही होती है
हमारे बीच की दूरियों को
लफ़्ज़ों से
और
बना रही होती है
एक पुल
फासलों को बांधकर

ताकि दूर होने पर भी
हम जुड़ा हुआ महसूस करें।

~ शालिनी पाण्डेय

दूरियां

जब अंदाज़ा ना था
करीबियों का
तो ये दूरियां भी
खलती ना थी

लेकिन उस रोज से
जब तू गले लगाकर
बोसा देकर चला गया
तो ये दूरियां खलने लगी।

~ शालिनी पाण्डेय

Saturday 15 June 2019

जोड़ते हुए

कभी मकान जोड़ते
कभी दुकान जोड़ते
कभी दहेज जोड़ते हुए,

अनेक पिताओं की
उम्र यूँ ही बीत जाती है
मेहनत में शरीर तोड़ते हुए।

~ शालिनी पाण्डेय

Friday 14 June 2019

पर तुम तो

हाँ, हाँ मुझे अब
कोई डर नही हैं
तुम्हें खोने का,

खोया उसे जाता है
जो हमसे पृथक हो,

पर तुम तो
मेरे भीतर की चेतन
साँसों जैसे हो,

तुम्हें तो उसी दिन
खोना होगा जब
मैं खुद को ही खो दूंगी।

~ शालिनी पाण्डेय

जीने का तरीका

अगर केवल यथार्थ में जीना ही
जीने का सर्वोत्तम तरीका होता तो
क्यूँ मौत के करीब आता हर व्यक्ति
जीना चाहता है बचपन के किस्सों में
आखिर बचपन तो जीवन का
सबसे यथार्थवादी पड़ाव नहीं !!

~ शालिनी पाण्डेय

Wednesday 12 June 2019

जीवन

निश्चय ही तुम टकराना चट्टानों से
और काट लेना उन्हें अपने वेग से।
बहा ले जाना इस वेग में अवसादों को
और धीमे होकर किसी मोड़ पर छोड़ जाना।

जो कोई भी साथ चले
लिए उसे तुम, बढ़ते जाना, बढ़ते जाना।
जीवन, तुम भी धारा जैसे
अविरत बहते जाना, बहते जाना।।

~ शालिनी पाण्डेय

प्लेटफॉर्म

रेल के प्लेटफॉर्म पर
जहाँ यात्रियों को लिए
ट्रेन कुछ देर रुकती है

इस प्लेटफॉर्म पर
बहुत शोर होता है
यात्रियों की बातों का शोर
विक्रेता के चिल्लाने का शोर
ट्रैन के हॉर्न का शोर

लेकिन फिर भी
इस शोर से अनभिज्ञ
कुछ बच्चें सो जाते है
बिना शिकायत किये
प्लेटफ़ॉर्म की खाली जगह पर
बिना रुई वाले गद्दे के ही।

~ शालिनी पाण्डेय

इंतजार

लंबे इंतजार के बाद आना,
वो आना चाहे बरसात का हो
या महबूब का
बहुत ही सुखदाई होता है ।

~ शालिनी पाण्डेय

Monday 10 June 2019

प्यार

प्यार जब छू लेगा तुम्हारे अन्तर्मन को
तो वो पवित्र कर देगा हर एक कोने को
तब मन ही बन जायेगा मंदिर
फिर ना गंगाजल लाने हरिद्वार जाना होगा
ना ही ईश्वर दर्शन को देवालय में ।

~ शालिनी पाण्डेय

गहन अनुभूति

प्यार की एक झलक को
महसूस कर पाना
प्यार बनकर तुम्हारा
मेरे जीवन में आना
मेरे जीवन की अब तक की
सबसे गहन अनुभूति है।

~ शालिनी पाण्डेय

Sunday 9 June 2019

फिक्र

मालूम है मुझे कि
फिक्र तुम्हें भी रहती है
मेरे हाल की
बस तुम्हें जताना नही आता।

~ शालिनी पाण्डेय

Irony of dreams

I sometime want
to be perfect
in this imperfect life.

I sometime want
to be complete
in this incomplete life.

I sometime want
to be immortal
in this mortal life.

See it's all I have
a series of 
Irony of dreams for life.

-~ Shalini Pandey

चले जाओ

तुम चले जाओ
जहां भी तुम जाना चाहो
मैं नहीं रोकूँगी तुम्हें।

सोचती हूँ तुम्हें रोक कर भी क्या करूँगी,
और जब मैं खुद ही रुकना नहीं चाहती
तो तुम्हें किस हक़ से रोक लूँ ?

~ शालिनी पाण्डेय

मौन

मौन जो टूटता है
भोर की किलकारियों से
फिर लौट आता है
सांझ के ढलते ही।

~ शालिनी पाण्डेय

यूँ भी

कई बार यूँ भी हुआ
कि उम्र बीत जाती है
यहाँ इंसान की
क्षणिक भंगुर जीवन को
जी पाने के प्रयास में।

~ शालिनी पाण्डेय

Saturday 8 June 2019

सदा

जब मैं नहीं रहूंगी
तब भी तुम रहोगे सदा
मेरी कविता के अल्फ़ाज़ों में
मेरी कविता के जज्बातों में।

~ शालिनी पाण्डेय

भोर

भोर के वक़्त तुम्हारी याद
रहती है मेरी अधखुली आँखों में
जो तलाशती है तुझे मुझमें ही कहीं।

~ शालिनी पाण्डेय

अतीत का पन्ना

फटे-पुराने लिबास को बदल लेने पर
अक़्सर इंसान को ग़लतफ़हमी हो जाती है,
कि भद्दा सा दिखने वाला अतीत का पन्ना
अब उसके जीवन में नहीं रहेगा ।

~ शालिनी पाण्डेय

Friday 7 June 2019

नौकरी

नौकरी देखो तो
तुम्हारा कद
कितना बड़ा हो गया है,

तुम्हारी ख़ातिर हमने
बिना आँसू बहाये
अपनी नदियों, पहाड़ों और
घरों से पलायन कर लिया ।

~ शालिनी पाण्डेय

बातें

बातें भी कितनी अजीब होती हैं
कभी ना होते हुए भी बन जाती हैं
और कभी होते हुए भी नहीं समझी जाती हैं।

~ शालिनी पाण्डेय

आजकल की शिकायत

आजकल हर किसी को
दूसरों से शिकायत है
कि कोई उन्हें नहीं समझता

उन्हें कोई ये बताये कि
मुश्किल होता है
सिर्फ चेहरा देख कर
शख़्सियत का अंदाजा लगाना

समझने और समझाने के लिए
चेहरे की परतों को पार कर
अंतरतम की गहराई में जाकर
व्यक्ति के ईमान को ढूढ़ना होता है ।

- शालिनी पाण्डेय

अपना आशियाँ

गौरैया जैसे हम भी बुनेंगे
अपना आशियाँ एक रोज़
किसी पहाड़ी पर
देवदार के ऊंचे पेड़ पर
बादलों के बीच
और बातें किया करेंगे
आसमा से ज़मी पे रहकर।

~ शालिनी पाण्डेय

तुम्हारी ओर

जब मैं चल रही होती हूं सड़क पर
हवा को काटते हुए
मुझे लगता है जैसे मैं तुम्हारी ओर
ही आ रही हूं दूरियों को मिटाते हुए।

~ शालिनी पाण्डेय

Tuesday 4 June 2019

इस जीवन में

बिखरे से इस जीवन में
प्यार मुझे समेटे हुए है
मेरे जिस्म के भीतर
मेरी रूह के अंदर।

- शालिनी पाण्डेय

Monday 3 June 2019

गहरा

तुम्हारे पर्वत हो जाने पर
मेरा घाटी हो जाना स्वाभाविक है,
क्योंकि तुम्हें ऊंचा उठाने के लिए
मेरा गहरा जाना भी तो जरूरी है।

- शालिनी पाण्डेय

Sunday 2 June 2019

जीवन की धूप

जीवन की धूप में जलकर
मन उजाड़ सा हो गया है
हे पर्वत, तुम मुझे
अपनी छांव में ले लो
और मेरे अंतर्मन को
पुनः हरा कर दो।

- शालिनी पाण्डेय

वक़्त की चाल

वक़्त की चाल
कुछ टेड़ी सी होती है,
जैसे ही कदम मिलाने
की कोशिश करो,
ये तुम्हें उलझाकर
फ़िर आगे निकल जाती है।

- शालिनी पाण्डेय

जब कभी

माना धूप जैसे मैं कभी
उड़ा ले जाती हूँ तुम्हारे रंगों को
लेक़िन
फ़िर मैं आती भी तो हूँ बसंत बन
उन रंगों को नया कर तुम्हें लौटाने।

~ शालिनी पाण्डेय

Saturday 1 June 2019

हिमालय की घाटी

हिमालय की घाटी
तुम माँ जैसे
फिर मुझे
अपने गर्भ में रख लो
और नौ माह बाद
अपनी तलहटी में ही
किसी नदी के रूप में
पुनर्जन्म दे दो ।

- शालिनी पाण्डेय

Friday 31 May 2019

पंख

यथार्थ मानस को
डराता है और
कल्पना पंख उगाती है
डर से पार पाने के लिए।

~ शालिनी पाण्डेय

लेखन कर्म

लेखन कर्म के लिए
शब्द बहुत जरूरी हैं
लेकिन जो सबसे जरूरी है
वो है संवेदना
जो लेखक को
शब्द चुनने और बुनने की
कला से परिचित कराती है।

- शालिनी पाण्डेय

त्वचा का रंग



एक लड़की, 
जो जन्मी है 
त्वचा का गहरा रंग लिए,
जिसने, जीवनपर्यन्त तराशा है ,
अपने अंतर्मन को....
आज भी, 
सुंदरता के,
तंग पैमाने की वजह से,
गोरी देह के साथ जन्मी
लड़की की तुलना में,
सुंदर नहीं कही जाती.....

- शालिनी पाण्डेय

हमारे बीच

जब तेरे और मेरे
बीच में मोहब्बत है तो
फ़िर ये शर्म और पर्दा
हमारे बीच कैसे?

- शालिनी पाण्डेय

तुम ख़्वाब क्यूं नहीं देखती

ऐ लड़की,
तुम अपने लिए
कोई ख़्वाब
क्यूं नहीं देखती ,
क्या सारी सांसें तुम
हिम्मत जुटाने में ही
जला दोगी?

- शालिनी पाण्डेय

Thursday 30 May 2019

जीने की सार्थकता

जीवन की निरर्थकता में ही
क्या पता
जीने की सार्थकता छिपी हो।

- शालिनी पाण्डेय

जब मैं खुद को अलग पाती हूँ

कई बार
जब मैं खुद को
अलग पाती हूँ
अन्य लड़कियों से
भौतिक नहीं
वैचारिक, बौद्धिक
और कल्पना के स्तर पर

तो मुझे ये 
अहसास कराया जाता है कि
अलग राह चुनना
यूँ तो सही है,
...
पर............
सुरक्षा ???????
वो कैसे पाओगी इस राह पर?
क्योंकि आखिर
हो तो तुम लड़की ही।

- शालिनी पाण्डेय

मैं नहीं चाहती

मैं नहीं चाहती,
बहुत बड़ा संसार अपने लिए,
मैं चाहती हूं,
बहुत सारी संवेदनाएं अपने लिए,
और हो सके तो
एक हमराही,
इन्हें सांझा करने के लिए।

- शालिनी पाण्डेय

हमारे आस पास

यहाँ हमारे आस पास
बहुत कम लोग है
जो कविता की
भाषा समझते है
और जो कविता के
मर्म को जान पाते है,

क्योंकि ज़्यादातर तो
स्थूल आवश्यकता
की पूर्ति में
अपनी जान उलझाकर
जो जानने योग्य है
उससे वंचित हो जाते है।

- शालिनी पाण्डेय

लिखना

लिखना एक प्रयास है
अंतर्मन की बेचैनियों को
शक़्ल देकर दूसरों से रूबरू
कराने का

लिखना एक लत है
सिगरेट जैसे
जिसके धुएं से तुम मदहोश हो
ना चाहते हुए भी

लिखना एक रिश्ता है
मोहब्बत की तरह
जो बनता चला जाता है
बिना किसी इजाज़त के

लिखना मानो एक घटना है
जिसमें बीत रहा होता है
लेख़क का वर्तमान
स्याही में डूबते-तैरते हुए।

- शालिनी पाण्डेय

Wednesday 29 May 2019

अल्फ़ाज़

कुछ अल्फ़ाज़
पुल जैसे होते हैं
जो दो मूक संवेदनाओं को
जोड़ने का काम करते हैं ।।

- शालिनी पाण्डेय

तुमको खोना

हाँ हाँ
मुझे डर नहीं है अब
तुमको खोने का,
खोया उसे जाता है
जो हमसे पृथक हो,
पर तुम तो
मेरे भीतर की चेतन
साँसों जैसे हो,
तुम्हें तो उसी दिन
खोना होगा जब
मैं खुद को ही खो दूंगी।

-शालिनी पाण्डेय

क्या तुम लौटा पाओगे मुझे

क्या तुम लौटा पाओगे मुझे
वो सावन जो तुम्हारे इंतज़ार में
बिना बरसे ही लौट गया

क्या तुम लौटा पाओगे मुझे
वो सवेरा जोे दीदार की चाह
में कभी हो नहीं पाया

क्या तुम लौटा पाओगे मुझे
वो इंतज़ार जो बेवज़ह
मेरी आँखों में घिर आया

क्या तुम लौटा पाओगे मुझे
वो दरिया जो तुम्हारे प्यार में
झील सा रुक गया

क्या तुम लौटा पाओगे मुझे
वो सब कुछ जो कभी मेरा था
पर अब तुम्हारा हो गया ।

- शालिनी पाण्डेय

Monday 27 May 2019

स्त्री और पुरुष

मानो एक ही रेखा के
दो छोर से है
स्त्री और पुरुष

जो कि
अपने अड़ियल पन में
विपरीत दिशाएँ अपनाकर  
फासले की खाईयों को जन्म देते है

और
अपने लचीले स्वभाव में
अनुकूल दिशाएँ अपनाकर
एक दूसरे को सम्पूर्ण करते है।

- शालिनी पाण्डेय

Sunday 26 May 2019

आंखें ख़्वाब पालती है

पलकों से खुद को
ढक कर, आंखें
ख़्वाब पालती हैं,
पलकें उठाकर,
आंखें, यादों के
धागे बुनती हैं...
और
बीते लम्हों के
टुकडें लिए,यादें 
जीवन भर
साथ चलती हैं।।

- शालिनी पाण्डेय

Saturday 25 May 2019

धुंधला सा चाँद

धुंधला सा चांद
आया है आज
मेरी खिड़की पर,
इसका चेहरा
ठीक वैसा ही
दिखता है
जैसे तुम्हारा
चेहरा था
उस रोज
जब तुम
पहली बार
मिलने आये थे
बीमारी का
पीलापन लिए।

- शालिनी पाण्डेय

तुम जब जागोगे

तुम जब जागोगे
तो शायद
मैं तुम्हारे शहर से दूर
निकल आयी होंगी

तुम अधखुली आंखों के
ख़्वाब में मुझे देखना
और मैं यादों में रखी
तुम्हारी सूरत निहार लूंगी।

- शालिनी पाण्डेय

तुम्हें क्या कहूं

तुम्हें क्या कहूँ ?
दोस्त,
हमराही या 
हमसफ़र...

सोचती हूं,
तुम्हें कुछ ना कहूँ,
सिर्फ कहने से ही
तो होना नहीं होता।

--शालिनी पाण्डेय

नारी

हर वाक़ये पर
कैसे तुम मुझे
अलग अलग
तराजुओं में
तोल देते हो

आज मैं तुमसे
विनती करती हूं
बाहर की सूचनाओं
को आधार बना
मुझे तोलना बंद करो

जब तुमने कभी मेरे
भीतर की चेतना की ओर
झांका ही नहीं और
सृजन के कारक को
पहचाना ही नहीं

तो तुम कैसे मेरी
तुलना कर सकते हो?

-- शालिनी पाण्डेय

Thursday 23 May 2019

कुछ यादें

कुछ यादें
कोयले जैसी होती हैं
जो वक़्त के दबाव को सहकर
हीरे में तब्दील हो जाती हैं।

- शालिनी पाण्डेय

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...