Saturday 27 July 2019

रोज थोड़ा

अभी कुछ दिन पहले की बात है
जब समेटा था यार के विश्वास को
तो खो दिया था स्वार्थ को

जब समेट रही थी प्रार्थना की ऊर्जा को
तो खो रही थी काले डर की छाया को

जब बोने जा रही थी प्यार के बीजों को
तो उखाड़ रही थी अहं की जड़ों को

ऐसे ही रोज थोड़ा समेटती हूँ खुद को
और बिखेर देती हूं थोड़े को।

~ शालिनी पाण्डेय

No comments:

Post a Comment

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...