विरह का संगीत सुनती हूं,
दर्द के पलों को चुनती हूँ,
तेरे अहसास को ओढ़ती हूं,
ऐसे ही तुझे साकारती हूं।
मैं चाहती हूं
कि तेरी डायरी हो जाऊं
जिसपे तू अनकही बातें लिख पाए
मैं चाहती हूं कि
चाय का प्याला हो जाऊं
जिसे हर रोज तू अपने लबों से लगाए
मैं चाहती हूं कि
तेरे बिस्तर की चादर हो जाऊं
जिस पर हर शाम तू अपनी थकन मिटाए
मैं चाहती हूं कि
एक सपना बन जाऊं
जिसमें तू मेरे सीने से लग पाए
मैं चाहती हूं कि
प्रेम की कविता हो जाऊं
जिसमें तेरी रूह अंततः मिल जाए।
~ शालिनी पाण्डेय
जब तू नहीं था
तो जीवन रूखा था
ना कविताएँ थी
ना गीत थे
ना सावन था
ना रंग थे
तेरे होने ने मुझे
रूखे जीवन की छाती में
बीज उगाने का हौसला दिया
तेरे होने ने मुझे
कविताओं के अर्थ दिये
गीतों को भाव दिए
तेरे होने ने मुझे
जिस्म के भीतर की
रूह से मिलवाया
तेरे होने ने मुझे
प्यार का अहसास दिया
जीवन की प्रेरणा दी
तेरे होने ने मुझे
सतही परतों को उखाड़ कर
गहराई में उतरने दिया
तेरे होने ने मुझे
अहसास दिया मेरे होने का
मुझमें ही खुदा के होने का ।
~ शालिनी पाण्डेय
जीवन का ये पन्ना जितना कोरा है
उतने ही रंग भी लिए हुए है
एक ओर विरह की खाई
दूजी ओर मिलन का शिखर लिए हुए है
प्रियतम के मिलने की खुशी के साथ
खुद की बेनकाबी का डर भी लिए हुए है
प्यार जीवन का वो पन्ना है
जो खूबसूरत और खतरनाक साथ में है ।
~ शालिनी पाण्डेय
देखो आज सारा दिन
टप-टप करती
संगीत बजाती हुई
बारिश गिरती रही
और साथ में
तुम्हारी यादों को
घोल - घोल
मेरे आँगन में
जमा करती रही ।
~ शालिनी पाण्डेय
क्या तूने सोचा कभी
कि ये तेरी और मेरी बातें
कभी ख़त्म क्यों नहीं होती ?
मुझे लगता है
कि ये बातें
भर रही होती है
हमारे बीच की दूरियों को
लफ़्ज़ों से
और
बना रही होती है
एक पुल
फासलों को बांधकर
ताकि दूर होने पर भी
हम जुड़ा हुआ महसूस करें।
~ शालिनी पाण्डेय
जब अंदाज़ा ना था
करीबियों का
तो ये दूरियां भी
खलती ना थी
लेकिन उस रोज से
जब तू गले लगाकर
बोसा देकर चला गया
तो ये दूरियां खलने लगी।
~ शालिनी पाण्डेय
कभी मकान जोड़ते
कभी दुकान जोड़ते
कभी दहेज जोड़ते हुए,
अनेक पिताओं की
उम्र यूँ ही बीत जाती है
मेहनत में शरीर तोड़ते हुए।
~ शालिनी पाण्डेय
हाँ, हाँ मुझे अब
कोई डर नही हैं
तुम्हें खोने का,
खोया उसे जाता है
जो हमसे पृथक हो,
पर तुम तो
मेरे भीतर की चेतन
साँसों जैसे हो,
तुम्हें तो उसी दिन
खोना होगा जब
मैं खुद को ही खो दूंगी।
~ शालिनी पाण्डेय
अगर केवल यथार्थ में जीना ही
जीने का सर्वोत्तम तरीका होता तो
क्यूँ मौत के करीब आता हर व्यक्ति
जीना चाहता है बचपन के किस्सों में
आखिर बचपन तो जीवन का
सबसे यथार्थवादी पड़ाव नहीं !!
~ शालिनी पाण्डेय
निश्चय ही तुम टकराना चट्टानों से
और काट लेना उन्हें अपने वेग से।
बहा ले जाना इस वेग में अवसादों को
और धीमे होकर किसी मोड़ पर छोड़ जाना।
जो कोई भी साथ चले
लिए उसे तुम, बढ़ते जाना, बढ़ते जाना।
जीवन, तुम भी धारा जैसे
अविरत बहते जाना, बहते जाना।।
~ शालिनी पाण्डेय
रेल के प्लेटफॉर्म पर
जहाँ यात्रियों को लिए
ट्रेन कुछ देर रुकती है
इस प्लेटफॉर्म पर
बहुत शोर होता है
यात्रियों की बातों का शोर
विक्रेता के चिल्लाने का शोर
ट्रैन के हॉर्न का शोर
लेकिन फिर भी
इस शोर से अनभिज्ञ
कुछ बच्चें सो जाते है
बिना शिकायत किये
प्लेटफ़ॉर्म की खाली जगह पर
बिना रुई वाले गद्दे के ही।
~ शालिनी पाण्डेय
लंबे इंतजार के बाद आना,
वो आना चाहे बरसात का हो
या महबूब का
बहुत ही सुखदाई होता है ।
~ शालिनी पाण्डेय
प्यार जब छू लेगा तुम्हारे अन्तर्मन को
तो वो पवित्र कर देगा हर एक कोने को
तब मन ही बन जायेगा मंदिर
फिर ना गंगाजल लाने हरिद्वार जाना होगा
ना ही ईश्वर दर्शन को देवालय में ।
~ शालिनी पाण्डेय
प्यार की एक झलक को
महसूस कर पाना
प्यार बनकर तुम्हारा
मेरे जीवन में आना
मेरे जीवन की अब तक की
सबसे गहन अनुभूति है।
~ शालिनी पाण्डेय
मालूम है मुझे कि
फिक्र तुम्हें भी रहती है
मेरे हाल की
बस तुम्हें जताना नही आता।
~ शालिनी पाण्डेय
I sometime want
to be perfect
in this imperfect life.
I sometime want
to be complete
in this incomplete life.
I sometime want
to be immortal
in this mortal life.
See it's all I have
a series of
Irony of dreams for life.
-~ Shalini Pandey
तुम चले जाओ
जहां भी तुम जाना चाहो
मैं नहीं रोकूँगी तुम्हें।
सोचती हूँ तुम्हें रोक कर भी क्या करूँगी,
और जब मैं खुद ही रुकना नहीं चाहती
तो तुम्हें किस हक़ से रोक लूँ ?
~ शालिनी पाण्डेय
कई बार यूँ भी हुआ
कि उम्र बीत जाती है
यहाँ इंसान की
क्षणिक भंगुर जीवन को
जी पाने के प्रयास में।
~ शालिनी पाण्डेय
जब मैं नहीं रहूंगी
तब भी तुम रहोगे सदा
मेरी कविता के अल्फ़ाज़ों में
मेरी कविता के जज्बातों में।
~ शालिनी पाण्डेय
भोर के वक़्त तुम्हारी याद
रहती है मेरी अधखुली आँखों में
जो तलाशती है तुझे मुझमें ही कहीं।
~ शालिनी पाण्डेय
फटे-पुराने लिबास को बदल लेने पर
अक़्सर इंसान को ग़लतफ़हमी हो जाती है,
कि भद्दा सा दिखने वाला अतीत का पन्ना
अब उसके जीवन में नहीं रहेगा ।
~ शालिनी पाण्डेय
नौकरी देखो तो
तुम्हारा कद
कितना बड़ा हो गया है,
तुम्हारी ख़ातिर हमने
बिना आँसू बहाये
अपनी नदियों, पहाड़ों और
घरों से पलायन कर लिया ।
~ शालिनी पाण्डेय
बातें भी कितनी अजीब होती हैं
कभी ना होते हुए भी बन जाती हैं
और कभी होते हुए भी नहीं समझी जाती हैं।
~ शालिनी पाण्डेय
आजकल हर किसी को
दूसरों से शिकायत है
कि कोई उन्हें नहीं समझता
उन्हें कोई ये बताये कि
मुश्किल होता है
सिर्फ चेहरा देख कर
शख़्सियत का अंदाजा लगाना
समझने और समझाने के लिए
चेहरे की परतों को पार कर
अंतरतम की गहराई में जाकर
व्यक्ति के ईमान को ढूढ़ना होता है ।
- शालिनी पाण्डेय
गौरैया जैसे हम भी बुनेंगे
अपना आशियाँ एक रोज़
किसी पहाड़ी पर
देवदार के ऊंचे पेड़ पर
बादलों के बीच
और बातें किया करेंगे
आसमा से ज़मी पे रहकर।
~ शालिनी पाण्डेय
जब मैं चल रही होती हूं सड़क पर
हवा को काटते हुए
मुझे लगता है जैसे मैं तुम्हारी ओर
ही आ रही हूं दूरियों को मिटाते हुए।
~ शालिनी पाण्डेय
बिखरे से इस जीवन में
प्यार मुझे समेटे हुए है
मेरे जिस्म के भीतर
मेरी रूह के अंदर।
- शालिनी पाण्डेय
तुम्हारे पर्वत हो जाने पर
मेरा घाटी हो जाना स्वाभाविक है,
क्योंकि तुम्हें ऊंचा उठाने के लिए
मेरा गहरा जाना भी तो जरूरी है।
- शालिनी पाण्डेय
जीवन की धूप में जलकर
मन उजाड़ सा हो गया है
हे पर्वत, तुम मुझे
अपनी छांव में ले लो
और मेरे अंतर्मन को
पुनः हरा कर दो।
- शालिनी पाण्डेय
वक़्त की चाल
कुछ टेड़ी सी होती है,
जैसे ही कदम मिलाने
की कोशिश करो,
ये तुम्हें उलझाकर
फ़िर आगे निकल जाती है।
- शालिनी पाण्डेय
माना धूप जैसे मैं कभी
उड़ा ले जाती हूँ तुम्हारे रंगों को
लेक़िन
फ़िर मैं आती भी तो हूँ बसंत बन
उन रंगों को नया कर तुम्हें लौटाने।
~ शालिनी पाण्डेय
हिमालय की घाटी
तुम माँ जैसे
फिर मुझे
अपने गर्भ में रख लो
और नौ माह बाद
अपनी तलहटी में ही
किसी नदी के रूप में
पुनर्जन्म दे दो ।
- शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...