Saturday 29 September 2018

खोजी मन

ये हर वक़्त
क्या खोजता रहता है तू
क्या ढूढ़ता है
मेरे वजूद को ?
या तराशता है
मेरी शक़्ल को ?
क्या खोजता है
मेरे दर का रास्ता ?
या मुझे पढ़ने की
कोई किताब ढूढ़ता है ?
या ढूढ़ता है हमारे
उस आशियां की चाभी
जो खो दी थी
सर्कस देखते हुए
कभी तो बता -
ये हर वक़्त
क्या खोजता रहता है तू?

-शालिनी पाण्डेय

Friday 21 September 2018

फूल और पात

कभी खिल जाती हूँ फूल सी
कभी झड़ जाती हूँ पात सी
मैं रोज अधूरी ही रह जाती हूं
अनकही किसी बात सी।

-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 19 September 2018

अनबूझी पहेली

कभी शांत सी
कभी उदास सी
कभी आनंदित सी
कभी हताश सी मैं

कभी बिखरी सी
कभी सिमटी सी
कभी पूनम सी
कभी अमावस सी मैं

कभी नदी सी
कभी सैलाब सी
कभी बयार सी
कभी चक्रवात सी मैं

कभी उथले शब्दों सी
कभी गहरे भावों सी
कभी सूरज की लाली सी
कभी घने रात के अंधियारे सी मैं

जितने सारे भाव हैं
उतने ही रूप भी
पर हूँ तो एक ही मैं
शायद इसीलिए
अनबूझी पहेली सी हूं मैं

-शालिनी पाण्डेय

Monday 17 September 2018

यादों की दस्तक़

तेरी यादों की दस्तक़
मेरी दहलीज़ पर
अब तो रोज ही होती है

घण्टों ये अब मुझसे
बातें करने लगी है
घर के कोनों पर
इकट्ठा भी होने लगी है
ज्यादा हो जाने पर
किवाड़ों से झांकने लगी है

इनमें से कुछ यादें तो
पन्नों में छपने लगी है
और कुछ बिस्तर पर
साथ सोने लगी है
और कुछ इंतजार की
साथी बनने लगी है

अब यूं लगने लगा है कि
ये यादों की दस्तक ही तो है
जो तुम्हें मेरे क़रीब रखने लगी है

-शालिनी पाण्डेय

Wednesday 5 September 2018

रात के घने अंधेरे में

रात के घने अंधेरे में भी
जाने कैसे लिख लेती है चादर पर
तेरा नाम ये अंगुलियां

करवटे लेते हुए
जाने कैसे पहुँच जाते है तेरे लब
मेरे ख्वाब के जाम पर

सिरहाने के पास ही
जाने कैसे नज़र आ जाती है
तेरी जैसी सूरत

नींद में भी
जाने कैसे हो जाती है
तुझसे मुलाकात

और सवेरा होते ही
जाने कैसे रह जाती है पास
भीनी सी तेरी एक खुशबू।

-शालिनी पाण्डेय

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...