क्या खोजता रहता है तू
मेरे वजूद को ?
या तराशता है
मेरी शक़्ल को ?
मेरे दर का रास्ता ?
या मुझे पढ़ने की
कोई किताब ढूढ़ता है ?
उस आशियां की चाभी
जो खो दी थी
सर्कस देखते हुए
ये हर वक़्त
क्या खोजता रहता है तू?
कभी शांत सी
कभी उदास सी
कभी आनंदित सी
कभी हताश सी मैं
कभी बिखरी सी
कभी सिमटी सी
कभी पूनम सी
कभी अमावस सी मैं
कभी नदी सी
कभी सैलाब सी
कभी बयार सी
कभी चक्रवात सी मैं
कभी उथले शब्दों सी
कभी गहरे भावों सी
कभी सूरज की लाली सी
कभी घने रात के अंधियारे सी मैं
जितने सारे भाव हैं
उतने ही रूप भी
पर हूँ तो एक ही मैं
शायद इसीलिए
अनबूझी पहेली सी हूं मैं
-शालिनी पाण्डेय
तेरी यादों की दस्तक़
मेरी दहलीज़ पर
अब तो रोज ही होती है
घण्टों ये अब मुझसे
बातें करने लगी है
घर के कोनों पर
इकट्ठा भी होने लगी है
ज्यादा हो जाने पर
किवाड़ों से झांकने लगी है
इनमें से कुछ यादें तो
पन्नों में छपने लगी है
और कुछ बिस्तर पर
साथ सोने लगी है
और कुछ इंतजार की
साथी बनने लगी है
अब यूं लगने लगा है कि
ये यादों की दस्तक ही तो है
जो तुम्हें मेरे क़रीब रखने लगी है
-शालिनी पाण्डेय
रात के घने अंधेरे में भी
जाने कैसे लिख लेती है चादर पर
तेरा नाम ये अंगुलियां
करवटे लेते हुए
जाने कैसे पहुँच जाते है तेरे लब
मेरे ख्वाब के जाम पर
सिरहाने के पास ही
जाने कैसे नज़र आ जाती है
तेरी जैसी सूरत
नींद में भी
जाने कैसे हो जाती है
तुझसे मुलाकात
और सवेरा होते ही
जाने कैसे रह जाती है पास
भीनी सी तेरी एक खुशबू।
-शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...