Wednesday 19 September 2018

अनबूझी पहेली

कभी शांत सी
कभी उदास सी
कभी आनंदित सी
कभी हताश सी मैं

कभी बिखरी सी
कभी सिमटी सी
कभी पूनम सी
कभी अमावस सी मैं

कभी नदी सी
कभी सैलाब सी
कभी बयार सी
कभी चक्रवात सी मैं

कभी उथले शब्दों सी
कभी गहरे भावों सी
कभी सूरज की लाली सी
कभी घने रात के अंधियारे सी मैं

जितने सारे भाव हैं
उतने ही रूप भी
पर हूँ तो एक ही मैं
शायद इसीलिए
अनबूझी पहेली सी हूं मैं

-शालिनी पाण्डेय

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