कभी शांत सी
कभी उदास सी
कभी आनंदित सी
कभी हताश सी मैं
कभी बिखरी सी
कभी सिमटी सी
कभी पूनम सी
कभी अमावस सी मैं
कभी नदी सी
कभी सैलाब सी
कभी बयार सी
कभी चक्रवात सी मैं
कभी उथले शब्दों सी
कभी गहरे भावों सी
कभी सूरज की लाली सी
कभी घने रात के अंधियारे सी मैं
जितने सारे भाव हैं
उतने ही रूप भी
पर हूँ तो एक ही मैं
शायद इसीलिए
अनबूझी पहेली सी हूं मैं
-शालिनी पाण्डेय
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