कभी खिल जाती हूँ फूल सी
कभी झड़ जाती हूँ पात सी
मैं रोज अधूरी ही रह जाती हूं
अनकही किसी बात सी।
कभी झड़ जाती हूँ पात सी
मैं रोज अधूरी ही रह जाती हूं
अनकही किसी बात सी।
-शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...
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