Wednesday 5 September 2018

रात के घने अंधेरे में

रात के घने अंधेरे में भी
जाने कैसे लिख लेती है चादर पर
तेरा नाम ये अंगुलियां

करवटे लेते हुए
जाने कैसे पहुँच जाते है तेरे लब
मेरे ख्वाब के जाम पर

सिरहाने के पास ही
जाने कैसे नज़र आ जाती है
तेरी जैसी सूरत

नींद में भी
जाने कैसे हो जाती है
तुझसे मुलाकात

और सवेरा होते ही
जाने कैसे रह जाती है पास
भीनी सी तेरी एक खुशबू।

-शालिनी पाण्डेय

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