रात के घने अंधेरे में भी
जाने कैसे लिख लेती है चादर पर
तेरा नाम ये अंगुलियां
करवटे लेते हुए
जाने कैसे पहुँच जाते है तेरे लब
मेरे ख्वाब के जाम पर
सिरहाने के पास ही
जाने कैसे नज़र आ जाती है
तेरी जैसी सूरत
नींद में भी
जाने कैसे हो जाती है
तुझसे मुलाकात
और सवेरा होते ही
जाने कैसे रह जाती है पास
भीनी सी तेरी एक खुशबू।
-शालिनी पाण्डेय
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