तेरी यादों की दस्तक़
मेरी दहलीज़ पर
अब तो रोज ही होती है
घण्टों ये अब मुझसे
बातें करने लगी है
घर के कोनों पर
इकट्ठा भी होने लगी है
ज्यादा हो जाने पर
किवाड़ों से झांकने लगी है
इनमें से कुछ यादें तो
पन्नों में छपने लगी है
और कुछ बिस्तर पर
साथ सोने लगी है
और कुछ इंतजार की
साथी बनने लगी है
अब यूं लगने लगा है कि
ये यादों की दस्तक ही तो है
जो तुम्हें मेरे क़रीब रखने लगी है
-शालिनी पाण्डेय
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