हम छोड़ आये
निर्बाध बहती नदियां
आकाश चूमते पहाड़
हरे भरे चीड़ और देवदार
निर्बाध बहती नदियां
आकाश चूमते पहाड़
हरे भरे चीड़ और देवदार
कर आये पलायन
आँगन में बहती ठंडी बयार से,
आँगन में बहती ठंडी बयार से,
लकड़ी और पत्थर के घरों से ,
छत पर टहलते सफेद बादलों से,
जमीन के गर्भ से निकले धारों से,
मडुवे और कौणी वाले अनाज से,
हिसालू, किलमोडा, काफल से,
छत पर टहलते सफेद बादलों से,
जमीन के गर्भ से निकले धारों से,
मडुवे और कौणी वाले अनाज से,
हिसालू, किलमोडा, काफल से,
और
अब हम रहते है
ईट के तपते भट्टों के भीतर
ज़हरीले धुएं के बीच
पीते है बिसलरी का पानी
खाते है डोमिनोज़ का पिज़्ज़ा
और बातें करते है पेड़ लगाने की,
पर्यावरण को बचाने की।
ईट के तपते भट्टों के भीतर
ज़हरीले धुएं के बीच
पीते है बिसलरी का पानी
खाते है डोमिनोज़ का पिज़्ज़ा
और बातें करते है पेड़ लगाने की,
पर्यावरण को बचाने की।
~ शालिनी पाण्डेय
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