Sunday 23 June 2019

तब और आज

हम छोड़ आये
निर्बाध बहती नदियां
आकाश चूमते पहाड़
हरे भरे चीड़ और देवदार

कर आये पलायन
आँगन में बहती ठंडी बयार से,
लकड़ी और पत्थर के घरों से ,
छत पर टहलते सफेद बादलों से,
जमीन के गर्भ से निकले धारों से,
मडुवे और कौणी वाले अनाज से,
हिसालू, किलमोडा, काफल से,

और 
अब हम रहते है
ईट के तपते भट्टों के भीतर
ज़हरीले धुएं के बीच
पीते है बिसलरी का पानी
खाते है डोमिनोज़ का पिज़्ज़ा
और बातें करते है पेड़ लगाने की,
पर्यावरण को बचाने की।
~ शालिनी पाण्डेय

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