निश्चय ही तुम टकराना चट्टानों से
और काट लेना उन्हें अपने वेग से।
बहा ले जाना इस वेग में अवसादों को
और धीमे होकर किसी मोड़ पर छोड़ जाना।
जो कोई भी साथ चले
लिए उसे तुम, बढ़ते जाना, बढ़ते जाना।
जीवन, तुम भी धारा जैसे
अविरत बहते जाना, बहते जाना।।
~ शालिनी पाण्डेय
Comments
Post a Comment