Monday 18 November 2019

हिमालय हूँ मैं

चीड़, ओक, देवदार की खुशबू लिए
कर रहा सुगंधित श्वासों को,
बुरांश, ब्रह्मकमल के फूल खिला
महका रहा घर-आंगन को,

मोनाल, ट्रैगोपान की चहक से
रोज सवेरे जगा रहा तुमको,
किलकारी भड़ल, हिम् तेंदुए की 
पाल रहा तुम्हारे आंचल में,

बन हिमाद्रियों का जन्मदाता 
कर रहा सुसज्जित केशों को,
पंच बद्री, पंचकेदार का रूप लिए
ध्यान और तप का स्थान हूं मैं,

पूनम के शशि सा तेज लिए,
सुशोभित तुम्हारे ललाट पर,
रहूंगा सतत ही मौन खड़ा,
तुम्हारी प्रहरी, हिमालय हूं मैं।

-शालिनी पाण्डेय 

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