Monday 18 November 2019

सरु चलो ना

किराये के
मकान की
बालकनी से,
बाहर झांकते हुए,
एक दिन,
उसने पूछा -

सरु,
कौन सा संगीत,
सुनाई देता है,
तुम्हें यहां ?
कौन सा नजारा,
दिखता है,
किवाड़ों को 
खोलने पर ?

कंधे पर, 
थोड़ा सा
खुद को टिकाकर,
वो बोला-

देखो ये दीवार...
कितनी बड़ी है,
लेकिन...
एक भी 
दूब का तिनका 
नहीं उग पाता 
इस पर...
कितनी 
विषाक्तता है,
साँसों में,
भीतर इन 
कोरी दीवारों के.....

कुछ देर, 
वो मौन रहा....
और सांसे जुटाकर  
पुनः बोल उठा- 

सरु चलो ना,
लौट चलते है,
वहाँ को,
जहां से आरंभ हुए...
चलो ना,
लौट चलते है,
अपने पहाड़ की ओर....

-शालिनी पाण्डेय

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