Thursday 30 May 2019

हमारे आस पास

यहाँ हमारे आस पास
बहुत कम लोग है
जो कविता की
भाषा समझते है
और जो कविता के
मर्म को जान पाते है,

क्योंकि ज़्यादातर तो
स्थूल आवश्यकता
की पूर्ति में
अपनी जान उलझाकर
जो जानने योग्य है
उससे वंचित हो जाते है।

- शालिनी पाण्डेय

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