Monday 20 May 2019

एक रोज़

जब मैं टूटकर
मिल जाऊंगी नदी में
और भाप बन
समा जाऊंगी बादल में
तो फ़िर
एक रोज मैं 
बरस जाऊंगी
तुम्हारी  छत पर
बारिश की बूंदें बन
और भिगो दूंगी
तुम्हें खुद में।

- शालिनी पाण्डेय

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