जब मैं टूटकर
मिल जाऊंगी नदी में
और भाप बन
समा जाऊंगी बादल में
तो फ़िर
एक रोज मैं
बरस जाऊंगी
तुम्हारी छत पर
बारिश की बूंदें बन
और भिगो दूंगी
तुम्हें खुद में।
- शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...
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