Monday 19 August 2019

उजड़ा सा पहाड़

टूटी शाखों पर
जब नई कोपलें निकल आती हैं

निर्बाध बहते झरने से
जब राही अपनी प्यास बुझाता है

जंगल के बीच वृक्ष की छांव में
जब थका हुआ चरवाहा सुस्ताता है

नदी की छोटी धार पर
जब कोई पत्थर का पुल बनाता है

वीरान त्याग दी गई राहों में
जब कोई अपना लौट आता है

विशाल बरगद की लटों से
जब कोई बच्चा झूला बनाता है

पत्थर के चूल्हे पर
जब कोई गीली लकड़ियां सुलगाता है

और बूढ़े देवालय में शाम को
जब कोई प्रकाश की लौ जलाता है

तो उजड़ा हुआ सा एक पहाड़
फिर से बस जाता है।

~ शालिनी पाण्डेय

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