Monday 14 October 2019

सलीका

तेरे बदन की ओस से भीगी हुई साँसें,
जो रेत के कणों को जोड़कर, 
मेरी शक़्ल को मूर्त बनाती है....
नदी के छोर सी तेरी बाहें,
जो इच्छाओं को स्वछंद बहाती हुई,
मुझे बचाये रखती है बिफरने से.....
और हर वक़्त साथ चलता,
तेरी खुशबू से महकता ये आशियाँ,
जीवन को अहसास देता है कि
तू एक सलीका है,
जिंदगी जीने का.....

- शालिनी पाण्डेय

No comments:

Post a Comment

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...