तुम चलो ना मेरे साथ
किसी पहाड़ पर,
वहीं बसायेंगे संसार
प्यार और विश्वास का ।।
वहां
बर्फ की नदियां सींचती
होंगी हमारे आँगन को,
चीड़ के पत्तों से पटे रास्ते
ताकते होंगे हमारी राह को,
प्रभात किरणें आतुर होंगी
हमारा माथा चूमने को,
देवदार की छाव फैली होगी
हमें बाहों में कसने को,
वहां
नीले अम्बर की चादर ओढ़े
हरे बुग्याल के सीने से लगकर
हम लेट लेंगे,
नदियों के बहाव से उत्पन्न
संगीत को सुनेंगे,
और संध्याकाल में
चोटी से उतरते सूर्यास्त को
छितिज पर बैठकर विदा देंगे ।
- शालिनी पाण्डेय
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