लो आ गयी,
तुम्हारी याद को
चाय में घोलती,
बरसात की ये शाम....
जो गाते हुए
बौछारों का संगीत,
मेरी खिड़की के बाहर,
धीमे-धीमे गुजरती है...
और अंधेरे होने तक,
गड़ाए रखती है,
मेरी आंखों को,
उस राह की ओर...
जिसपे एक रोज
तुम मिलने आये थे....
~ शालिनी पाण्डेय
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