वो चेहरा
कितना जाना पहचाना सा
ऊर्जावान और आशावादी
धैर्यशील और उद्गामी
कैसे जुटा रहता है दिन रात
मेरी खुशियों के लिए
हर दिन भागता दौड़ता
मेरे आराम के लिए
धूप में निरंतर तप रहा
मुझे छांव करने को
हर बारिश में भीग रहा
मुझे छत देने को
एक एक पाई जोड़ रहा
मुझ पर खर्च करने को
काट रहा है अपना जीवन चंद सुविधाओं में
जी रहा है अपने सपने मेरी आँखों में
अभी थोड़े बाल सफेद हो गये तो क्या
चेहरे पर कुछ झुर्रियां घिर आई तो क्या
प्रफुल्लित है वो आईने में मेरी सूरत देख
अपने जीवन की आपाधापी में
शायद मैं देख ही नही पायी
उस चेहरे की खूबसूरती को
अनुभव ही नही कर पाई
उसके त्याग और स्नेह को
पहचान ही ना सकी कि
वो मेरे सपनों के लिए जिया
और निरंतर जी रहा है
आगे क्या होगा
नही जानती
उसके त्याग का मूल्य चुका पाऊंगी
बता पाना है मुश्किल
लेकिन ये विश्वास है
जिसको तूने कलम पकड़ना सिखाया
तेरा नाम क़लम से स्वर्णिम अक्षरों में लिखेगी।
-शालिनी पाण्डेय
Comments
Post a Comment