Friday 15 May 2020

एक वक्त था

एक वक्त था
जब शाम कल्पनाओं में 
डूबी रहती थी
छुट्टी का दिन 
घाट किनारे गुजारा जाता था

एक वक्त था
जब तुम्हें सामने पाकर 
खुशियां सम्हाले ना सम्हलती थी
चाय पर बातों का सिलसिला 
खत्म नहीं होता था

और अब सिर्फ वक़्त है
ना बातें है, ना तुम हो, 
ना घाट का किनारा, 
ना ही रंगीन शामें है...

अब बस इन्तज़ारी है
हालातों के सुधर जाने की
और किसी रोज फिर से
तुम्हें गले लगाने की।

- शालिनी पाण्डेय 

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