Thursday 12 April 2018

वो यही कही है पास में

सूरज की गुनगुनी धूप में
पहाड़ों पे ढ़लती सांझ में
सूखे पत्तों की सरसराहट में
आंगन में बहती बयार में
वो यही कही है पास में

सुबह अध खुली आँखों में
दिनभर की भागा दौड़ी में
शाम की सुस्ती में
घनी रात की तन्हाई में
वो यही कही है पास में

जागते हुए होश में
नींद के आगोश में
सपनों की मदहोशी में
वक़्त के इंतज़ार में
वो यही कही है पास में

मेज पर पड़ी डायरी में
कलम की लाल श्याही में
पेज पर उकेरे चित्रों में
लिखी हुई कविताओं में
वो यही कही है पास में।

-शालिनी पाण्डेय

No comments:

Post a Comment

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...