सूरज की गुनगुनी धूप में
पहाड़ों पे ढ़लती सांझ में
सूखे पत्तों की सरसराहट में
आंगन में बहती बयार में
वो यही कही है पास में
सुबह अध खुली आँखों में
दिनभर की भागा दौड़ी में
शाम की सुस्ती में
घनी रात की तन्हाई में
वो यही कही है पास में
जागते हुए होश में
नींद के आगोश में
सपनों की मदहोशी में
वक़्त के इंतज़ार में
वो यही कही है पास में
मेज पर पड़ी डायरी में
कलम की लाल श्याही में
पेज पर उकेरे चित्रों में
लिखी हुई कविताओं में
वो यही कही है पास में।
-शालिनी पाण्डेय
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