Wednesday 4 April 2018

यादों की सलवटें

हर रात में अपने दिल की चादर बिछाती हूं
जिसपे तू सुबह यादों की सलवटें छोड़ जाता है।

शायद मेरी आँख लगने के बाद
चुपके से तू आया होगा
पास आकर बैठा देर तक
मुझे निहारता रहा होगा

शायद आंखों के इशारों से
कुछ बातें भी कही होंगी
और लबों की खामोशी से
प्यार का गीत भी गुनगुनाया होगा

शायद मेरे सिरहाने पर
तूने अपना सर टिकाया होगा
और जगह बनाने के लिए थोड़ा
मुझे छूकर हिलाया भी होगा

पर मैं बावरी तेरी यादों को ओढ़कर ऐसी सोयी होंगी
कि इतने करीब होने पर भी पास ना रुकाया होगा।

-शालिनी पाण्डेय

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