हर रात में अपने दिल की चादर बिछाती हूं
जिसपे तू सुबह यादों की सलवटें छोड़ जाता है।
शायद मेरी आँख लगने के बाद
चुपके से तू आया होगा
पास आकर बैठा देर तक
मुझे निहारता रहा होगा
शायद आंखों के इशारों से
कुछ बातें भी कही होंगी
और लबों की खामोशी से
प्यार का गीत भी गुनगुनाया होगा
शायद मेरे सिरहाने पर
तूने अपना सर टिकाया होगा
और जगह बनाने के लिए थोड़ा
मुझे छूकर हिलाया भी होगा
पर मैं बावरी तेरी यादों को ओढ़कर ऐसी सोयी होंगी
कि इतने करीब होने पर भी पास ना रुकाया होगा।
-शालिनी पाण्डेय
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