ना सिग्नल थे
ना सोशल मीडिया
ना दोस्तों का हुजूम
ना ही पहचाना शहर
बस तुम थे और
जीवन का सफर
तुम तुम जैसे थे
मैं मैं जैसी
ना कोई वादे थे
ना कोई बंदिशें
बस दो किरदार थे
अपने आप को
खुद ही लिखते से।
--शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...
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