सर्दी के एक रोज
मैं ताप रही थी
एक रिश्ते की गर्माहट को
आंखे मूंदे
थाप रही थी
साथ वाली तस्वीर को
आती सांस के साथ
पाट रही थी
बीच के फैसलों को
और लकीरों पर
सजा रही थी
तुम्हारे नाम की हिना को।
अजीब बात है ना ?
ना मैंने इजाज़त मांगी
ना तुमने कुछ कहा
बिना तुमसे पूछे ही
खुद में जोड़ती जाती हूं तुमको।
-शालिनी पाण्डेय
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