जब मैं तुम्हें सोचते सोचते
हो जाती हूँ निःशब्द,
मुझे जाने क्यूं लगता है
बिन लफ़्ज़ों के भी
कह आयी हूं तुमसे
सारी दास्तां।
अब तुम ही बताओ
क्या तुमने सुनी!
-शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...
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