Saturday 11 August 2018

जी चाहता है

आग से तपी वो सूरत
जिसे एक टक देखने रहने को जी चाहता है।
सर्द हवाओं से जकड़ रहा वो चेहरा
जिसे लौ से सुलगाने को जी चाहता है।

पतझड़ से सूख रहे वो होंठ,
जिन्हें चूमने को जी चाहता है।
बेनूर हो रहा वो शख्स,
जिसे मौसमों से रंगने को जी चाहता है।

मीलों तक पसरे फ़ासले,
जिन्हें दौड़ कर कम करने को जी चाहता है।
कहने को यूं तो कुछ नहीं,
पर तेरी एक खामोश मुलाकात को जी चाहता है।

-शालिनी पाण्डेय

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